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________________ मेरे दिवंगत मित्रों के कुछ पत्र मेरे उक्त लेप को द्विवेदीजी ने सरस्वती के सन् १९१५ के जुलाई वाले मन में प्रकानित किया। इस लेख के विषय के महत्व को लक्ष्य में रख कर सरश्यती पनिका के ६० वर्ष वाले हीरक जयन्ती के अवसर पर जो विगिण्ठ श्राद्ध रूप ग्रन्थ (मन् १९६१ में) प्रकागित हुआ है उसमें भी इस लेख को सास उद्रत किया गया है (देखो हीरक जयन्ती अशा पृष्ठ ५३६) - हिन्दी भापा में लिखा गया मेरा यह प्रथम सुवद्ध लेख है। इसके बाद श्री द्विवेदीजी ने मुझे एक पत्र लिखकर पाटन के "जन पुरतक भंडारों" पर एक विशिष्ठ लेख लिखने का श्रामन्त्रण दिया, जिरो मैंने बहुत परिश्रम पूर्वका, कई महीनों में लिख कर श्री द्विवेदीजी के पास भेज दिया। लेरा को भी उन्होंने बहुत पसंद किया और सरस्वती में उचित रूप से प्रकाशित किया। संक्षेप में मेरे साहित्यिक जीवन का व्यवस्थित प्रवास सरस्वती के दर्शन और उसमे प्रकाशित लेगों के भाग्य से शुरु हा । श्री द्विवेदीजी के साथ मेरा गाफी पत्र व्यवहार होता रहा । जिनमे गे सुछ ही पल सुरक्षित रह सके। द्विवेदीजी ने मेरी लिखी हुई हिन्दी तथा गुजराती में कुछ पुस्तको की विगिष्ठ समालोचनायें भी न आदर और उल्लास भरे शब्दों में सरस्वती में प्रकागित की। इतना ही नहीं उन्होंने गुजराती भाषा में लिखित मेरा एक निवन्ध जिसका नाम "पुरातत्व संगोधननो पूर्व इतिहास" और जो अहमदाबाद क गुजरात विद्यापीठ अन्तर्गत गुजरात पुरातत्व अथावली में प्रकागित मार्यविद्या व्याएयान माला नामक पुरतका में प्रकागित हा था, उसका पूरा सार अपनी भापा में लिखकर सररवती में प्रमाणित किया था। उनका यह लिखित सार "पुरातत्व प्रसंग" नामकी उनकी छोटीसी पुस्तिका में पुनः प्रकाशित हुआ है।
SR No.010613
Book TitleMere Divangat Mitro ke Kuch Patra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherSarvoday Sadhnashram Chittorgadh
Publication Year1972
Total Pages205
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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