SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 0 सफलता समयसापेक्ष है । की गई किसी भी क्रिया का फल समय पर प्राप्त होता ही है । यह हम व्यवहार मे भी देखते हैं कि एक व्यक्ति मधुर फल प्राप्ति के लिए आम का पेड लगाता है, लेकिन आम उसको कब मिल पाते है ? जब बीज वृक्ष बन जाता है। बीज के वृक्ष बनने तक तो प्रतीक्षा करनी ही पडेगी। अभी बीज डाला अभी फल मिल जाए ऐसा असम्भव है। यह सब कार्य समय की अपेक्षा रखते हैं । जल्दबाजी से सफलता की प्राप्ति बड़ी ही मुश्किल बात है। यही बात कर्म क्षेत्र मे भी है । प्रत्येक किया गया काम सफलता तक पहुंचाने के लिए समय की अपेक्षा रखता ही है। इसीलिए फल की आकाक्षा के परित्याग की बात हमारे पूर्व ऋषियो ने की है। वे कहते रहे हैं कर्म करो, परन्तु फल की आकाक्षा मत रखो। निष्काम कर्म ही विकास की पहली शर्त है। निष्काम कर्म की भावना से ही निस्वार्थवृत्ति का प्रादुर्भाव होता है। जब निस्वार्थ भावना व्यक्ति के अन्दर आ जाती है तो परिवार, समाज और राष्ट्र की शान्ति एव प्रगति अवश्यभावी है। । चिन्तन-कण | ८७
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy