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________________ 0 दुख का मूल कारण वस्तु का वियोग नहीं, अपितु उसकी स्मृति है। जीवन मे सयोग-वियोग का खेल चला ही करता है। सयोग-वियोग अपने आप मे सुख-दुख के कारण नहीं है। सुख दुख का कारण है उनकी स्मृति । यह मानव-मन की दुर्बलता ही है कि वह स्मृति के भार को ढोता रहता है, और, सूख दुख की अनुभूति करता रहता है । यह स्मृति कभी-कभी बडी अशान्त स्थितियां पैदा कर देती है । इस अशान्त स्थिति मे सुख पाने के लिए भूत और भविष्य के भार को एक ओर फैक, वर्तमान मे ही जीना सीखना चाहिए। पूर्व स्मृतियाँ कभी कभी मनुष्य के चिन्तन एव कर्तव्यशक्ति को पगु वना डालती हैं। उसका विकास अवरुद्ध हो जाता है। वह अनेक कुण्ठाओ से घिर जाता है । ठीक है, वर्तमान की अज्ञ अवस्था मे स्मृति अपरिहार्य है, परन्तु वह मन का भार न बनने पाए, वह हमारे चिन्तन अथवा विचारो को जकडने न पाए, इस बात का विशेष ध्यान रखना है । स्मृति केवल स्मृति ही रहे, वह सुख-दुख की दात्री न बन सके। तभी हम सुख-दुख से ऊपर उठ सकेंगे। इनसे असम्पृक्त रह सकेंगे। यही जीवन जीने की कला है। स्मृतियो से निरपेक्ष रहना सीखिए। चिन्तन-कण | ८५
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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