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________________ - सुनते आये है कि पारस से लोहे का सस्पर्श होते ही लोहा सोने में परिवर्तित हो जाता है। लेकिन आज तक का इतिहास बतलाता है कि एक पारस दूसरे पारस को उत्पन्न नही कर सका। हजारो लाखो मण लोहे को सोना बनाने की सामथ्र्य उममे है अवश्य, परन्तु अपने समान दूसरा पारस बनाने मे वह नितान्त असमर्थ ही रहा है और रहेगा भी। इसीप्रकार फुलबाड़ी में खिला फूल भी स्वय खिल सकता है, वातावरण को सुन्दर एव सुवासित कर सकता है, परन्तु दूसरा फल नहीं बना सकता। अपने वरावर के पौधे के फल को वह खिला देने मे सर्वथा असमर्थ है । लेकिन इस पृथ्वी तल पर एक पुष्प ऐसा भी है जो अपने समीपस्थ अनेकानेक पुप्पो को भी खिला देने मे सर्वथा समर्थ है। एक पारस ऐया मी है, जो दूसरा पारस उत्पन्न कर देने मे सिद्धहस्त है। वह पुप्प और पारस है प्राणीजगत का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव । मनुप्य मे ही एक ऐसी सामर्थ्य है जो अपने सम्पर्क में आने वालो को अपने जैसा बना सकता है। स्वय सा निर्मित कर देने की शक्ति केवल मनुष्य मे ही है, जो इसकी अपनी एक बहुत बडी विगेपता है। ८.चिन्तन-कण
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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