SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । चलते-चलते मनुष्य के जीवन मे कभी-कभी ऐसे प्रसग भी आ जाते है, जब उसको सहारे की आवश्यकता अनुभव होने लगती है। ठीक है यदि पांव दुर्वल पड गए है तो वैसाखी का सहारा अवश्य लीजिए और सहारा लेना ही होगा। वह द्रुत से नही तो धीमे ही आपको गतिमान रहने मे अवश्य ही सहायक होगी। किन्तु ध्यान रखिए, वैसाखी वैसाखी है, वह पाव नहीं हैं। तीन काल मे भी वह पांव का स्थान नही ले सकती। लम्बी मजिल को तय करने के लिए सशक्त कदमो की ही आवश्यकता होती है । सहारो का आधार कुछ समय के लिए ही काम दे सकता है। " ७२ | चिन्तन-कण
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy