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________________ 0 मन कीशक्ति बडी प्रवल शक्ति है । मन मानव व्यक्तित्व का वह ज्ञानात्मक रूप है, जिससे उसके सभी कर्म सचालिन होते हैं। मन मे मनन करने की क्षमता होने के कारण ही मानव को चिन्तनशील प्राणी कहा जाता है । मन की दृढ शक्ति के द्वारा मनुष्य वडे-बडे अद्भुत आश्चर्यजनक कार्य कर डालता है । जब तक मनुष्य का मनोवल अक्षुण्ण रहता है, तथा उसकी सकल्प शक्ति नही टूटती, तव तक कठिन से कठिन कार्य से भी मानव पराजित नहीं होता। कोई भी अवरोध उसे लक्ष्य प्राप्ति से नही रोक सकता। मन के टूटने पर बड़े-बडे सकल्प धराशायी हो जाते हैं। मन ही व्यक्ति की सफलता, असफलता का मूलाधार है । जिस कर्म के प्रति व्यक्ति का रुझान होता है, वह उस कार्य को अनेक कप्ट अनुभव करता हुआ भी कर गुजरता है। एक पर्वतारोही इसी मन के रुझान के कारण भीषण हिमाच्छन्न पर्वतो पर हँसते मुस्कुराते चढ जाता है, मार्ग की अनेकानेक कठिन-कठोर वाधाओ को पार करता हुआ । यह सव मनोवल का ही चमत्कार है। मनोवल वस्तुत सफलता की कुञ्जी है। जिस काम के प्रति मनुष्य के मन मे अनुराग नही, अभिरुचि नहीं, वह काम न तो मनुष्य ठीक तरह से कर पाता है, और न उस काम के समय मे उसमे कोई स्फूर्ति ही होती है। उत्साह की बात तो बहुत दूर की बात है। ५४ / चिन्तन-कण
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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