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________________ श्रम प्रगति का द्वार है । पूर्णता के शिखर पर श्रम के सोपान द्वारा ही पहुंचा जा सकता है । आज के श्रम का फल, कल का आराम और आनन्द है । श्रम नए-नए प्रतिफलो के द्वार उद्घाटित कर देता है। विश्व की ऐसी कोई उपलब्धि नही, जो श्रम के द्वारा सम्प्राप्त न की जा सकती हो । भौतिक अथवा अध्यात्मिक, दोनो ही क्षेत्रो मे इसकी प्रतिष्ठा की महती आवश्यकता है । यह हमारे दोनो ही जीवन - मीनारो की नीव है । परम लक्ष्यप्राप्ति का प्रथम एव सशक्त चरण है । समाज का आधार यह श्रम ही तो है । जिस राष्ट्र के नागरिक श्रमजीवी होंगे वह राष्ट्र समृद्ध होगा तथा उसको कोई भी परास्त नही कर सकेगा । श्रम व्यक्ति, परिवार, समाज तथा राष्ट्र के स्थैर्य का प्रतीक है, उन्नति का द्योतक है । इसलिए जीवन के प्रत्येक क्षेत्र मे श्रम की प्रतिष्ठा आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य है | श्रम के उपासक बनिए । श्रम को जीवन का अभिन्न अग अनिवार्य रूप से बनाइए । फिर सिद्धि एव सफलता आपके अपने पास है । चिन्तन-कण | ५
SR No.010612
Book TitleChintan Kan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Umeshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1975
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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