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________________ मुंहता नैणसीरी ख्यात धांनां पण दीवाणसौ याही वात ठहराई छ। तदी दीवांणरै वड़ो सांमत विक्रमायत झालो हुतो, तिको आय ऊभो रह्यो।' अर अठीसू, विज. ऊदावतनू श्री रावजी हुकम कियो। ताहरां विजो सलाम करविक्रमायत सांम्है हुवो। सु विजै गोढे ढाल हुती नही । तद रावजी. कह्यो-'वारै सामंत कनै ढाल छ ।' विजेनं पण कह्यो-'ढोल लै ।' सु विजौ पाछौ घिरियो ही नहीं । जावतै हीज मुह प्रागै रावजीरो अराबो खडो हुतो सु एकै रहकळेरो पहोड़ो चढिय हीज काढि अर हाथ कर लियो । जाइ भेळो हुवो।' दीवाणरै सांमतनू कह्यो--'जु पैहला थे वाहो। ईयै पण मरणासू डरत पैहला घाव कियो । स पहियो आडो दीन्हो सु पहियो आधोहेक वढियो । अर विजै तरवार काढी त्यां पांच झालै सौ झल सगी नहीं। सु अँवळे हीज पागड़े उतरण लागो ।11 इतरै पैहली ऊदावत विज वाही सु दोय सूत हुवा । तिसड़े सांखलो नापो दीवांण गोढे ऊभो हुतो सु अरज कीवी-'जु, दीवांण सलामत ! खांडो एकै धारो हीज वाहै।13 -- दीवांणरै सांमत माहै जिका हुई सु दीवांण माहै पण होत । पण दीवाणरो भाग वडो। धरती दे लडाई टाळी। इतरै कहता वीच रावजीरै फोजांरी वागां ऊपड़ी।14 त्या दीवांणरी फोज पाछी मुड़ी। इतरै 1 और दीवानके प्रधानोने भी दीवानसे यही बात नक्की की है। 2 तव दीवानका वडा सामत विक्रमायत (विक्रमादित्य) झाला था सो आकर खडा हुआ। 3 और इधरसे विजय ऊदावतको श्री रावजीने हुक्म किया। 4 विजयके पास ढाल नही थी। 5 सो विजय (ढाल लेनेको) वापिस लौटा नही। 6 जिघरको जा रहा था उघर सामने ही रावजीका अरावा खडा था, उसमेसे एक रहकलेका पहिया सवारी किये हुए ही निकाल लिया और हाथमे थाम लिया । 7 जा करके (विक्रमादित्यसे) मिला । 8 पहले तुम प्रहार करो। 9 इसने मर जानेके भयसे पहले प्रहार कर दिया। 10 विजयने ढालकी जगह पहिया आडा कर दिया, विक्रमादित्यके प्रहारसे पहिया आधाइक कट गया । IT फिर जव विजयने तलवार निकाली तो उसके तेजको विक्रमादित्य झाला सहन नही कर सका, वह घोडे परसे पीठकी ओर मुड़ कर उलटा उतरने लगा। जवळ पागडे उतरणो (मुहा०)-सामने की ओर नही उतर कर पीछेकी ओर उतरना । उलटा उतरना। 12 इसके पहले ही विजय ऊदावतने प्रहार किया सो विक्रमादित्य दो टुकड़े हो गया । 13 उस समय साखला नापा. दीवान (राणाजी) के पास खड़ा था, उसने अर्ज की-दीवान चिरायु हो । देखिये, खड्ग एक प्रवाहकी तरह ही चला रहा है ।', 14 इतना कहते ही रावजीकी, सेनाको वागें उठी।
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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