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________________ , मुहता नैणसीरी ख्यात आई छै ।" इतरो सुणतां दीवांण रै मुहडैरो रंग फुर गयो।' सांखलै नापै न कह्यो-'किणही भांत सुलह पण हुवै ? तद नापै अरज करी-- 'दोवाण सलामत, राठोडारे वैररो मामलो खरो जोरावर छ । अर वळे वैर ही राव रिणमलरो।' त्यां-त्यां दीवांण खरा डरण लागा। तद नापै अरज कीवी--'जु दीवांण ! वैर जोरावर छै । किणही भांत धरती दीन्हा टळे तो दीवाण । धरतो दीजै । श्रा वात दीवाणरै पण मनमें आई ।' नापै दरबार सौ डेरै आय तुरत रावजी सांम्हां कासीद दोडाया। __'जु श्रीरावजी ! अठै बळ काई न छ। वेगा पधारो सु विध करज्यो। पछै श्री रावजीरी फोजां ठोड-ठोड मेवाडमें आय लूबी' । देसरो जळळ जादा दीवांणजीनू पहुतो। दीवांणजीनै फिकर सबळो हुवो। सांखलै नापैनै कह्यो-'जो किणी भांत वात होवै तो भलो हुवै ।तद नापै अरज कीवी-'श्री दीवांण । परधानो करावो । मोटो माणस मेल्यां वात हुसी।14 तद राणैजीरा परधान श्री रावजी कनै15 आया, अरज कीवी । 'श्री रावजी ! हूणी हुती सु हुई।" अर प्रो तो मुलक ही थाहरो वसायो छै । थे मारस्यो तो कुण राखसी ?18 तद रावजी बोल्या-'जु या वात तो खरी पण वैर ही करणा पासांण छ, 1 'जी, दीवान । वात सत्य है । यह खवर मेरे पास भी आई है। 2 इतना सुनते ही दीवानके चेहरेका रग फिर गया। 3 किसी भी प्रकार सुलह भी हो सकती है 4 दीवोन दीर्घायु हो | राठौडोके बैर का मामला निश्चय ही दुष्कर है। 5 और जिसमे वैर भी राव रिणमल का? ) यदि धरती (देशका कोई भाग) देनेसे यह सकट किसी भांति टल जाय तो (मेरी प्रार्थना है कि) धरती दे दीजिये। 7 यह वात दीवान को भी जंच गई। -8 यहा कुछ शक्ति (करामात) नहीं है। आप यहा जल्दी पहुँच जायं ऐसा उपाय करे । 9 आकर फैल गई। (आकर लूट पाट करने लगी) 10 देशकी इस दुर्दशाका दीवानजी (राणा)को अधिक दुख हुआ। II बहुत ज्यादा। 12 यदि किसी भी प्रकार परस्पर सुलहकी बात हो तो ठीक हो। 13 प्रधान मनुष्योको भेज कर सुलह की वात करवाइये। 14 बडे श्रादमीको भेजने पर ही बात हो सकेगी। 15 पास। 16 अर्ज की। 17 जो बात होनी थी सो हो गई। 18 और यह देश तो आपका ही वसाया हा है। श्राप ही मारेंगे तो फिर रक्षा कौन करेगा ?
SR No.010611
Book TitleMunhata Nainsiri Khyat Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBadriprasad Sakariya
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages304
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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