SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इन्द्रगढ़ का हस्तलिखित ग्रन्थ-संग्रह ... राजस्थान सरकार के आदेश सं० २६१, दिनांक ४-८-५६ ई० के अनुसार इस विभाग की ओर से इन्द्रगढ़ स्थित पोथीखाने का निरीक्षण किया गया। ग्रन्थों की अस्तव्यस्त स्थिति की जानकारी प्राप्त होने पर राज्य सरकार से उक्त संग्रह को इस संस्थान के संरक्षण में प्राप्त कराने का प्रस्ताव किया गया। तदनन्तर राज्य के पत्र सं० एफ. ६ (६२) एज्यू. वी. ५६, दिनांक २४-१०-५६ ... ई० के अनुसार अनुमति प्राप्त होने पर इन्द्रगढ़ से उस संग्रह को इस विभाग में प्राप्त कर लिया गया। ठिकाना इन्द्रगढ़ (कोटा) का पोथीखाना विद्याप्रेमी महाराजा श्री शिवसिंहजी के समय में 'सरस्वती भंडार' के नाम से स्थापित किया गया था। महाराजा शिवसिंह स्वयं अच्छे विद्वान, सुकवि एवं विद्याप्रेमी थे। इनके द्वारा निर्मित कितने ही ग्रंथ उपलब्ध होते हैं जिनमें से कुछ इस संग्रह में भी प्राप्त हुए हैं। शिवसिंहजी के सुपुत्र महाराजा हाड़ा संग्रामसिंह अपने समय के एक आदर्श साहित्यकार नरेश .. हुये हैं । ये बड़े ही विद्यारसिक एवं सुकवि थे । अच्छे-अच्छे पंडितों को पुरस्कृत करना एवं ग्रन्थरचना करते-कराते रहना इनका व्यसन था। इनके द्वारा निर्मित सौ से भी अधिक ग्रन्थ प्राप्त होते हैं जिनमें से भी अधिकांश इन्होंने अपने ठिकाने में शिला-मुद्रणालय की व्यवस्था कर मुद्रित करा लिये थे, जो अब प्रायः अप्राप्त हैं। उक्त हाड़ा संग्रामसिंहजी के समय में इस संग्रह की दशा अवश्य अच्छी रही होगी, यह स्वतः अनुमेय है। इनके उत्तराधिकारी महाराजा सुमेरसिंहजी के निःसंतान अवस्था में अकाल ही काल-कवलित हो जाने पर इस संग्रह की दुर्दशा होने लगी और ग्रन्थ भी इतस्ततः नष्टभ्रष्ट एवं जीर्ण-शीर्ण होने लगे। जिस समय इस संग्रह को देखा गया उस समय यह ठिकाने की सम्पत्ति के रूप में रखा हुआ था। बहुत से ग्रन्थ गढ़ में धूल में दबे हुये जीर्ण-शीर्ण, कीटविद्ध, दीमक-वर्षादि से क्षतिग्रस्त अवस्था में पड़े थे जिन्हें प्राप्त करके इस . .. विभाग के संग्रहालय में व्यवस्थित-रूप में संशोधकों के उपयोगार्थ रखा गया ... है। संप्रति इस संग्रह में २०६ हस्तलिखित ग्रन्थ प्राप्त हैं। इनमें बहुत से ग्रन्थ हाड़ा संग्रामसिंह एवं उनके पिता महाराजा शिवसिंहजी के रचे हुये हैं। .. इनके अतिरिक्त कुछ छपे हुए उर्दू ग्रन्थ भी प्राप्त हुये हैं। राजवंशीय साहित्यकार हाड़ा संग्रामसिंह की अोर, जितना चाहिये उतना, ..... अभी विद्वानों का ध्यान नहीं गया है। उक्त संग्रह की पुस्तकों की प्रस्तुत सूची विद्वानों एवं सर्वसाधारण की जानकारी और उपयोग के लिये प्रकाशित कराई .:. . जा रही है। .. --मुनि जिनविजय ....................... ...... .
SR No.010608
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy