SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२० ] [ राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जोधपुर ... ४८४. ५८६५ सिंहासन बत्तीसी आदि- ॥ श्री गणेशाय नमः ।। अथ स्यंघासन वतीसी भोज प्रबंध हितौ उपदेस कवि क्रस्नदाश कति लिपते । छैपा- प्रथम सुमरि गण इसनं गणनायक । विघ्नहरन मति राय काज सिधिकरण सहायक ।। येक दंत मय मंन अंत नहि पाव पाव सुमति गति । फरस हथ समरथ देव परतछ अमित गति ॥ कवि कस्नदास वंदत चरन, और सुमति दुस्तर तरन । रस सिंधु मौढ विक्रम चरित सु, करित दुरित दुर्गम हरन ॥ १ अन्त- दीनो वर विक्रमकों सोय, सारिवाहन तन दाहन होय ।। तो लगि सो नृप आयो तहा, विक्रम वीर अंवि जहा ।। ४० चंडी वाच तेरे हेत दह्यो तन आय.... विशेष- इसके पश्चात् पत्र रिक्त है। २२-जैनस्तोत्र ३. ४१४६ अन्तरिक्ष पार्श्वस्तव आदि- श्री अन्तरीक पार्श्वनाथ छन्द लिष्यते । दूहा- सारदपाय प्रणमां करी, आपो अविरल वांरिण। पुरसादाणी पास जिरण, गास्युं गुण-मरिण-पांणि ।। १ अद्भुत कौतुक कलियुगे दीसै एह अदंभ । धरतीथी अधर रहै, सदा अंतरीक थिर थंभ ॥ २ अन्त- कीयो छंद आनंद वृद मनमाहै प्राणी।। सांभलतां सुषकंद चंद जिम सीतल वाणी ॥ श्रीविजयदेव गुरुराज अाज तस गणधर राजै । श्रीविजयप्रभ सूरि नाम काम सम रूप विराजै ॥ गणधर दोय प्रणमी करि थुरिगयो पास असरण-सरण । भावविजय वाचक भरणे जयो देव जय जय करण ॥ ४६ इति श्री अंतरीक पार्श्वनाथ छंद संपूरण । ४३४६ अजित शांतिस्तव (सवालावबोध) त्रिपाठ प्रादि-अजि अंजि असघ भयं संति च संत सब गय पावं। . जय गुरु संति गुण करे दोवि जिणवरे परिणवयामि ॥ १ ४.
SR No.010608
Book TitleHastlikhit Granth Suchi Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1960
Total Pages403
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy