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________________ वस्तुत इसी दासता से हो सकता है । जब तक परमपद की प्राप्ति न हो, तव नक स्वामो-सेवक का सवध बना रहता है, तत्पश्चात् वह स्वत ही सदा के लिए नष्ट हो जाता है। पूज्यजनो का तथा गुणी जनो का दास वनकर उनकी प्राजा का पालन करना मानवता है। २६. सख्य विश्व मैत्री और भगवत्-मैत्री दोनो का ममावेश सख्य मे हो जाता है। इससे मानवता का विकास होता है। इस गुण के विकसित होने से शेप सभी गुण स्वय विकसित हो जाते हैं, क्योकि जब किसी के साथ मित्रता का सबध होता है तब वह उसका न कभी अहित सोचता है और न उसकी कभी बुराई करता है। अत मानवता के विकास मे सख्य भी एक अमोघ उपाय है। ३० आत्म-समर्पण . __ मानवो की भलाई के उद्देश्य से मूक एव निरीह प्राणियो की रक्षा आत्म-बलिदान देकर भी करनी चाहिए। गुरु के आगे अपने द्वारा किए गए अपराधो को सरल हृदय से व्यक्त करना, अपनी भूल को शुद्ध हृदय से मान लेना, पुन वैसी भूल न करने के लिए सतत जागरूक रहना प्रात्म-समर्पण है। यह विशेपता भी मानव मे ही पाई जाती है। अत आत्म-समर्पण करना भी मानवता का एक अभिन्न अंग है। ' योग एक चिन्तन ] [२५३
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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