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________________ ३. वायवी-धारणा- जब ध्याता दूसरे ध्येय की धारणा मे पूर्णतया सफल होजाए तो, वह यह चिन्तन करे कि मेरे चारो ओर वायु मडल घूम-घूम कर कर्मो की राख को उडा रहा है। ध्यानावस्था मे उस मडल के चारो ओर स्वाय-स्वाय अक्षर अकित हुए देखे। स्वाय . . स्वाय स्वाय : 214 -SATHI ra स्वाय ४. वारुणी-धारणा- ध्याता जब तीसरी धारणा के अभ्यास मे सफल हो जाए, तव वह चौथी धारणा में प्रवेश करके चितन करे कि मेरे ऊपर काले-काले मेव छा गए है खूब पानी बरसने लग गया है । जल-धाराएं आत्मा के साथ लगी हुई कर्म-रज को या आत्मा को मलिनता को दूर करके स्वच्छ एव निर्मल कर रही है । ऐसा भी चितन करे कि उस मेघ मण्डल मे चारो ओर प प प लिखे हुए है। प प प प प प प प प प प प प प प प प प | प प प प प प . योग . एक चिन्तन ] [ १८७,
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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