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________________ पच परमेष्ठी के गुणो का कथन करना, भक्ति-पूर्वक उनकी प्रशसा एव स्तुति करना, गुरु श्रादि की विनय करना, भूल कर भी कभी उनकी प्राशातना न करना, उन्हे १४ प्रकार का दान देना, उनके श्रुत, शील एव सयम मे अनुराग रखना तत्त्वो के अर्थों पर श्रद्धा रखना, साधक के ये सभी गुण धर्म-ध्यान के चिन्ह हैं। धर्मध्यान के अवलम्बन गगन-चुम्बी महलो के शिखर पर पहुंचने के लिए जैसे लिफ्ट, सीढी आदि का उपयोग करना जरूरी होता है वैसे ही धर्म-ध्यान के शिखर पर पहुचने के लिए निम्नलिखित प्रमुखतम चार अवलम्वन है, केवली-प्ररूपित शास्त्रो का मनन करते-करते जब स्व-अर्थात् अपना ही अध्ययन प्रारम्भ हो जाता है वह स्वाध्याय कहलाता है । स्वाध्याय द्वारा श्रुत-ज्ञान प्राप्त होता है, श्रु त ज्ञान से धर्मध्यान के शिखरो पर पहुचना सुगम हो जाता है । १ वाचना-संवर और निर्जरा के लिये शिष्य को सूत्र और अर्थ का स्वाध्याय कराना, वाचना है। गुरु की यह मनोभावना होती है कि शिष्य आगमो का ज्ञान प्राप्त करके बहुश्रुत बने । इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिये वे शिष्य को वाचना देते हैं। कुछ गुरुजन इस उद्देश्य से भी वाचना देते है कि उनके शिष्य उनकी साधना मे सहायक वने, क्योकि सुशिक्षित गिष्य ही आहार-पानी, वस्त्र, पात्र, मकान, आदि की शुद्ध गवेषणा करने योग्य बन सकता है और दूसरो के सयम मे सहायक बन सकता है। कुछ गुरुजन अपने कर्मो की निर्जरा के उद्देश्य से शिष्यो को वाचना देते हैं। कुछ गुरुजन इस उद्देश्य से भी वाचना देते हैं कि पढने की अपेक्षा पढाने १८०] [योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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