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________________ विचय और संस्थानविचय, मंत्री, प्रमोद करुणा और मध्यस्य भाव । धर्म के पांच भेद - पाच समितियो का पालन, पाच इन्द्रियों का निग्रह | पाच महाव्रतो या पाच प्रणुत्रतो तथा पाच चारित्रों का पालन, चार कपाय और मन, इन पांचों पर विजय । धर्म के छ भेद - छ काय की हिंसा से निवृत्ति, छ कायो की यथावत् रक्षा, छ प्रकार का वाह्यतप, छ. प्रकार का ग्राभ्यन्तर तप, छ प्रकार का कल्प | पड् श्रावश्यक | धर्म के सात मैद - सात शिक्षाव्रत । सप्त कुव्यसनो का त्याग - ( शिकार खेलना, सुरापान करना, जुप्रा खेलना, परस्त्री गमन, वेश्या-गमन, चोरी करना, मांस और डी आदि का सेवन करना, ये मात कुव्यसन है ) 1 धर्म के प्राठ भेद - सिद्धो के प्राठ गुणो का चिन्तन करना । यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, व्यान और समाधि इन सवको आराधना करना धर्म हैं । P धर्म के नौ भेद-नो वाडो सहित ब्रह्मचर्य धर्म की आराधना करना | ब्रह्मचर्य संयम भी है और सारे तपो में उत्तम तप भी हैं - "तवेसुं व उत्तमं बभचेरं ।" श्रागमकारों ने ब्रह्मचर्य को उत्तम तप माना r १७४ ] [ योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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