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________________ +tortokottotke २६. अप्रमाद , प्रमाद का विरोधी तत्व अप्रमाद है । असावधानी से सावधानी की ओर बढना अप्रमाद है। जैसे कटकाकीणं मार्ग पर यदि कोई पथिक सभल-संभल कर बडी सावधानी से चलता है तो वह कांटो की चुभन से बहुत कुछ बच जाता है, जैसे क्सिी फिसलन वाले स्थल पर चलता हुआ मानव पद पद पर फिसलता ही जाता है, उसी स्थल पर यदि कोई विवेक पूर्वक सावधानी से चलता है तो वह सब तरह की क्षति से सुरक्षित रहता है, जैसे किसी भूमि-भाग मे मनुष्यो का बहुत बडा मेला भरा हुआ होता है, उस मेले मे जेब काटने वालो का गिरोह भी असावधान व्यक्तियो की खोज मे घूमता रहता है, यदि किसी की गांठ मे धन है तो उसे पूर्णतया सतर्क एव सावधान रहने की प्रावश्यकता होती है. तभी उसका धन सुरक्षित रह सकता है, वैसे ही साधना-पथ के पथिक के लिये प्राध्यात्मिक क्षेत्र मे निरन्तर अप्रमत्त रहने की आवश्यकता होती है। जिसके कारण जीव मोक्षमार्ग के प्रति प्रयत्नशील बन जाए वह अप्रमाद है । मन, वाणी और काय को सुमार्ग मे लगाना, केवली-भाषित धर्म के पालन करने मे उद्यम करना, देवगुरु और धर्म के प्रति मूढ़ न बनना, जिन वाणी पर, नव तत्त्वो पर और निम्रन्थ प्रवचन पर पूर्ण श्रद्धा रखना, पाच महाव्रतों तीन गुप्तियो और पांच समितियो आदि मोक्ष के उपायो पर दृढ-निष्ठा रखना, पृथिवीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय, वनस्पतिकाय एव त्रस योग एक चिन्तन ] [१५३
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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