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________________ के साथ एक प्रासन पर न बैठना, क्सिी को वासना-लोलुप दृष्टि से न देखना और विकारी वातावरण से दूर रहना कायिक ब्रह्मचर्य है। - - -विकारोत्पादक गीत एव वार्तालाप आदि न सुनना, वासना वर्धक बातचीत न करना, अश्लील भार्पण न करना, कामोत्तेजक पदार्थ न खाना, खाने में संयम रखना, वाचिक ब्रह्मचर्य है। क्योकि जिसने रसना को नहीं जीता, वह विषयों को नहीं जीत सकता। इमको अस्वाद व्रत भी कहते है। एक रेसनेन्द्रियं को वश कर लेने से शेप सभी इन्द्रिया स्वय वश मे हो जाती हैं। सदैव विचारों को पवित्र रखना, पूर्वकृत भोगो का स्मरण न करना, स्वाध्याय, ध्यान एव चितन में मन को लगाना 'आदि मानसिक ब्रह्मचर्य के रूप हैं। __ काम के समान कोई व्याधि नही, मोहं के समान कोई शत्रु नहीं, क्रोध के समान कोई आग नही, जान के समान कोई सुख नही। ___ काम-वासना दूसरे सब पापों के लिए और दुखो के लिए दरवाजा खोल देती है और ब्रह्मचर्य से सभी दरवाजे बंद हो जाते हैं-पापो के भी और दुखो के भी प्रश्न-व्याकरण सूत्र के चौथे सवर द्वार मे ब्रह्मचर्य को सर्वोत्तम वत्तीस उपमानों से उपमित किया गया है। ब्रह्मचर्य भगवान है और ब्रह्मचर्य रूप भगवान की पाराधना पांच भावनाओ से हो सकती है। वे पांच भावनाएं निम्नलिखित है . १. विविक्त - शयनासन • सेवन-सयम-परायण साधु या सीध्वी को ऐसे स्थान मे विल्कुल नहीं ठहरना चाहिए, जो स्थान १२२] [ योग 'एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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