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________________ वस्तु के स्वामी की आज्ञा लिये विना या उससे याचना किए विना किसी की वस्तु का ग्रहण करना द्रव्य चोरी है। किसी स्थान या मकान आदि पर बिना आजा के बलपूर्वक आधिपत्य जमाना क्षेत्र-चोरी है। द्रव्य और क्षेत्र को जितने समय के लिए ग्रहण किया हो उतना समय पूर्ण होने पर भी वापिस न करना, अपने काम पर ठीक समय से न पहुचना काल-चोरी है।। ___ लौकिक दृष्टि से जिस को चोरी कहते है, वे प्राय द्रव्य-चोरी और क्षेत्र चोरी के ही रूप हैं । काल-चोरी भी अपेक्षा-कृतं मान ली जाती है। समय पर काम न करना, समय पर कार्यालय मे न पहुंचना और समय पर पारिश्रमिक न देना, समय पर कर्जा लेकर न लौटाना चोरी है। • तप-चोर, वच-चोर, रूप-चोर, प्राचार-चोर और भाव-चोर, . इनका भी आगमो मे उल्लेख, प्राप्त होता है। महाव्रती को इन । की ओर भी ध्यान देन-चाहिए। १. बहुत बार नाम सेंमान होने से जनता भ्रम मे पड़ जाती है। भ्रान्त व्यक्ति की भ्रांति को न निकालकर उसे और अधिक भ्रांति मे डाल देना, दूसरे की प्रतिष्ठा को नष्ट करने का प्रयत्न करना यह भी चोरी है। एक व्यक्ति तपस्वी होने के कारण दुर्वल है और दूसरा व्यक्ति रोगी एव दुराचारी होने के कारण दुर्वल है। दुर्बल दोनो हैं। ऐसी दशा मे अपनी रोग-जन्य एव वासना-जन्य दुर्वलता को - १ देखो दशवकालिक सूत्र का ५,१०, २ उ०, गा० ४८-४९।- .. ११८ योग . एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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