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________________ 'मरणाशसा प्रयोग' है । (ग) कामाशसा प्रयोग - जिम इच्छा का संबंध मन पसन्द शव्द और रूप से हो, जैसे कि मुझे ग्रभोष्ट शब्द सुनने को मिलें और अभीष्ट रूप देखने को मिले, ऐसी कामना करना "कामाशसाप्रयोग" है । (घ) भोगाशंसा प्रयोग - ग्रभीप्ट गध, रस और स्पर्श की अनुभूति को भोग कहते है, ग्रमुक तरह के सुगंधित पदार्थ, खानेपीने के स्वादिष्ट पदार्थ और अनुकूल स्पर्गवाले पदार्थ मुझे मिलें, ऐसी चाहना करना 'भोगागंसाप्रयोग' है । (ड) लाभाशसा प्रयोग - लाभ भी अनेक तरह का होता है - विजय - लाभ, सपत्ति-लाभ, सत्ता-लाभ, शुभ परिवार का लाभ, सुख एवं ऐश्वर्य का लाभ, स्वास्थ्य लाभ, और समुन्नतिलाभ आदि । इस प्रकार की लौकिक एव भौतिक इच्छाश्रो की पूर्ति के लिए कामना करना तथा योगजन्य, एव तपोजन्य लब्धियो को प्राप्त करने की कामना करना या मेरे अमुक साथी को उक्त लाभ हो, ऐसी कामना को "लाभाशसा प्रयोग" कहते है । (च) पूजाशसा प्रयोग - मैं देवो की तरह पूजा जाऊ या पूज्यजनो की तरह ससार मे मेरी पूजा हो, मेराही सव ओर बोल-बाला हो, ऐसी तीव्र इच्छा को 'पूजागसा प्रयोग' कहते है । - (छ) सत्काराशसा प्रयोग - मेरा सब लोग आदर-सत्कार करे, इनाम मिले, भरी सभा मे अभिनंदन हो, स्वागत एव विदाई समारोह हो, मुझे थैली भेट की जाए एव अमूल्य पदार्थों के उपहार मिले, लोगो से इस तरह के सत्कार की कामना करना 'सत्काराशसा प्रयोग' है । इन सभी तरह की इच्छानो से विरक्त होना १. स्थानाङ्गसून, स्थान दसवा १०८ ] [ योग : एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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