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________________ प्रस्तावना राजस्थानी भाषा का ऐतिहासिक गद्य-साहित्य और ख्यात राजस्थानी में प्राचीन गद्य प्रभूत मात्रा में पाया जाता है। ऐतिहासिक गद्य उसका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। प्राचीन ऐतिहासिक गद्य की ऐसी प्रचुरता असमिया को छोड कर भारतवर्ष की किसी आर्य-भापा में नहीं मिलती। असमिया भारत की प्राच्यतम भापा है तो राजस्थानी पाश्चात्य-तम । राजस्थानी के ऐतिहासिक गद्य के अनेक रूप है, जैसे ख्यात, वात, वसावळी, पीढियावळी, पट्टावळी, विगत, हकीगत, हाल, याद, वचनिका, दवावैत आदि । ख्यात इतिहास को कहते है। वात में किसी व्यक्ति या जाति या घटना या प्रसग का सक्षिप्त इतिहास होता है। ख्यात बडी होती है और वात छोटी। वसावळी और पीढियावळी में पीढिया दी जाती है, जिनके साथ में व्यक्तियो का सक्षिप्त या विस्तृत परिचय भी प्राय रहता है। पट्टावळी में जागीरदारो के पट्टे अर्थात् जागीरो का विवरण रहता है। जैनो की पट्टावलियो में विविध गच्छो के पट्टधर आचार्यों की पीढिया और उनका सक्षिप्त परिचय होता है। विगत का अर्थ विवरण है। हकीगत और हाल में किसी घटना या प्रसग का विस्तृत वर्णन होता है। याद याददाश्त को कहते है। वचनिका और दवावत ऐतिहासिक काव्य होते है। इनमें गद्य-वाक्यो के युग्म होते है जिनकी तुर्के मिलती जाती है। वचनिका में साथ में पद्य भी मिश्रित होता है । सबसे प्राचीन वचनिका चारण शिवदास की बनाई हुई 'अचळदास खीचीरी वचनिका' है, जिसकी रचना स० १४६० के लगभग हुई थी। दूसरी महत्त्वपूर्ण वचनिका खिडिया शाखा के चारण जग्गा की बनाई हुई 'राव रतन महेसदासौतरी वचनिका' है, जिसका रचनाकाल स० १७१५ के लगभग है। विविध जातियो की वशावळिया भाट, मथेरण आदि लिखते रहे है। जैन वशावळियो के १०-१५ बडे-बडे पोथे श्री अगरचन्द नाहटा के सग्रह में है। वच्छावत वशावळी आदि कई वशावळिया तो इतिहास के लिये बड़ी महत्त्वपूर्ण है । जैन श्रीपूज्य लोगो के 'दफ्तर' अर्थात् पत्र-सग्रह ( Records) भी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक गद्य की कृतिया है। विविध राज्यो की पीढियावळिया प्राचीनकाल से लिखी जाती रही है, पर उनमें से अधिकांश अब उपलब्ध नही। ऐसी कुछ कृतिया बीकानेर के अनूप सस्कृत पुस्तकालय जैसे कईएक सग्रहो में विद्यमान है। ___ सत्रहवी शताब्दी में सम्राट् अकवर हुआ। उसे इतिहास से बहा प्रेम था। उसके शासन में इतिहास-लेखन को बहुत प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। राजपूत राजाओ को भी उसने प्रेरित . किया और तब से राज्यो की ओर से नियमित ख्यातें लिखी जाने लगी। इस समय उपलब्ध ख्यातें सत्रहवी शताब्दी से ही प्रारम्भ होती है । राजकीय ख्यातो के लेखक राजकीय कर्मचारी, पचोळी आदि लोग थे। पर कई व्यक्तियो ने स्वतन्त्र रूप से भी ख्यातें लिखी। इनमें नैणसी, दयालदास और वाकीदास के नाम
SR No.010598
Book TitleBankidasri Khyat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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