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________________ (७) ग्रथ वास्तव में उपयोगी हो सके इस उद्देश्य को ध्यान में रखकर सपादक ने ख्यात का संपादन करने के पूर्व वातो को क्रम से लगा देना अत्यन्त आवश्यक समझा। इतिहास का विद्वान न होने के कारण उसे पग-पग पर कठिनाइयो का सामना करना पड़ा, पर उन पर विजय पाने का भरसक प्रयत्न किया गया । फिर भी कई स्थानो में गलतिया हुई हो, यह सम्भव है। अन्त में कुछ बातें ऐसी भी रह गई जिनके ठीक स्थान का निर्णय नहीं हो पाया। उनको अन्त में फुटकर वातो में अस्पष्ट वातो का शीर्षक देकर रख दिया गया है । ___ ख्यात में अधिकाश बाते राजपूतो के इतिहास से सम्बन्ध रखती है। उनमें भी राठोड़ो से सवद्ध बातों की संख्या बहुत बडी है । क्रम लगाते समय सबसे पहले राजपूतो से सबद्ध सामान्य बातो को देकर फिर उनकी विविध शाखाप्रो के राज्यो को एक-एक करके लिया गया है । सबसे पहले राठोडो के जोधपुर राज्य को लिया गया है, फिर जोधपुर के ठिकानो को और फिर राठोडो के अन्यान्य राज्यो तथा ठिकानो को। राठोडो के पश्चात् गहलोतो, यादवो, कछवाहो, चौहाणो आदि राजपूतो की अन्यान्य शाखाओ को लिया गया है। राजपूतो के पश्चात् मराठो, सिखो, मुसलमानो और अग्रेजो की बातो को स्थान दिया गया है। इसके पश्चात् ब्राह्मण तथा प्रोसवाळ आदि जातियो और जैनो के गच्छो की वातें दी गई है । आगे धार्मिक, भौगोलिक, तथा प्रसिद्ध व्यक्ति और वस्तुओ की बातें देकर अन्त में फुटकर वातें-इस शीर्षक के नीचे नीति सम्बन्धी वातें, दूहा-गीत आदि कवितायें तथा अस्पष्ट और अधूरी बातो को रखा गया है। ख्यात के साथ हिन्दी अनुवाद और अनुक्रमणिका Index देने का भी विचार था। अनुक्रमणिका वास्तव में बहुत आवश्यक थी। पर यह अनुक्रमणिका बहुत बडी होती, स्वय अथ से भी वही क्योकि ग्रथ में आदि से अन्त तक व्यक्तियो और स्थानो की भरमार है। यह काम समय-सापेक्ष था। पुस्तक बहुत दिनो से प्रेस में थी। ग्रथावली के सचालक मुनिजी महाराज ग्रथ को शीघ्र ही प्रकाशित कर देना चाहते थे अत वे अनुक्रमणिका के तय्यार होने तक ठहरने को राजी नही हुए। इस सस्करण को तय्यार करने में मुझे अनेक दिशामो से सहायता मिली। मेरे भूतपूर्व शिष्य, और अब डूगर कालेज (बीकानेर) के इतिहास-विभाग के अध्यक्ष, श्री नाथूराम खडगावत तथा मेरे दूसरे भूतपूर्व शिष्य, और अव फोर्ट हाईस्कूल (बीकानेर ) के हिंदी और इतिहास के शिक्षक, थी दीनानाथ खत्री ने ख्यात की सब बातो को अलग-अलग चिटो पर लिखा जिससे क्रम लगाने में सुविधा हुई। श्री अगरचद नाहटा ने प्रारम्भ से ही इस सस्करण की -तय्यारी में अभिरुचि ली। पुरातत्त्व मन्दिर के उत्साही सहायक श्री पुरुषोत्तम मेनारिया ने इसके प्रूफो को देखा है । सभी वन्वुपो का हृदय से आभार मानता हूँ। यहा पर गुरुवर स्वर्गीय श्री प्रोझाजी तथा मुनि श्री जिनविजयजी के पुण्य नामो का स्मरण भी मै आवश्यक समझता हूँ, जिनसे अपने साहित्यक कार्य में, मै निरन्तर प्रेरणा प्राप्त करता रहा हूँ, और जिनकी कृपा के फलस्वरूप ही यह सस्करण प्रस्तुत और प्रकाशित हो सका है। राजस्थान भारती पीठ, बीकानेर, नरोत्तमदास स्वामी बसन्तपचमी, स० २००६ )
SR No.010598
Book TitleBankidasri Khyat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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