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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व तुम्हारे उपदेश की अपेक्षा तुम्हारे चरण के उपदेश को सुनने के लिए अधिक उत्कण्ठित है ।" ८३ कवि जी अपने आचार पक्ष में दम्भ, कपट, माया और छलना को कभी पसन्द नहीं करते । वे कहते हैं कि मनुष्य को सरल होकर जीवन की साधना करनी चाहिए " अरे मनुष्य ! तू नुमाइश क्यों करता है ? तू जैसा है, वैसा ही वन । अन्दर और बाहर को एक कर देने में ही सच्ची साधना है । यदि मानव अपने को लोगों में वैसा ही जाहिर करे, जैसा कि वह वास्तव में है, तो उसका बेड़ा पार होते देर न लगेगी ।" सावक को सदा सजग होकर रहना चाहिए । इस सम्बन्ध में कवि जी कहते हैं "कठोर और सदा जागृत रहने वाले पहरेदार के समान, साधक को अपने प्रत्येक शब्द और अपने प्रत्येक कर्म पर कड़ी निगरानी रखनी चाहिए | देखना, कहीं भूल न हो जाए ? अनुशासन एवं संयम साधक की साधना का प्राण तत्त्व है । ग्रपने छोटे से छोटे कार्य और व्यवहार पर कठोर नियंत्रण रखो !" साधक जब तक अपनी वासना पर विजय प्राप्त नहीं कर लेगा, तव तक किसी भी प्रकार के आचार का पालन नहीं कर सकेगा । इस विषय में कवि जी कहते हैं "ब्रह्मचर्य जीवन का अग्नि-तत्त्व है, तेजस् एवं ओजस् है । उसका प्रकाश और उसकी प्रभा जीवन के लिए परम आवश्यक है । भौतिक और आध्यात्मिक तथा शारीरिक और मानसिक सभी प्रकार का स्वास्थ्य ब्रह्मचर्य पर अवलम्वित है । ब्रह्मचर्य की साधना मन, वचन और तन- तीनों से होनी चाहिए । मन में दूषित विचारों के रहने से भी ब्रह्मचर्य की पवित्रता क्षीण होने लगती है । बाहर में भोग का त्याग होने पर भी कभी-कभी वह अन्दर घुस बैठता है । अतः साधक को अपनी साधना में सदा सजग, सचेत एवं जागृत होकर रहना चाहिए ।" कवि जी के व्यक्तित्व का आचार-पक्ष दिन के उजेले की तरह उजला है । उनका आचार, विचार पर और विचार, आचार पर स्थित
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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