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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व लिए भरसक प्रयत्न करें। भला जो स्वयं मल-लिप्त हैं, वे दूसरे मललिप्तों से क्यों कर ऊंचे हो सकते हैं ? ७६ अन्त में मुझे भगवान् महावीर के अनन्य उपासक जैन वन्धुओं से यह कहना है कि अगर तुम भगवान् महावीर के सच्चे भक्त हो, और उन्हें अपना धर्म - पिता मानते हो, तो उनके कदमों पर चलो । संसार में सच्चा सपूत वही कहलाता है, जो अपने पिता के कार्यो का अनुसरण करता है । छुआछूत का झगड़ा तुम्हारा अपना है, जैन-धर्म का नहीं है । यह तो तुम्हारे पड़ौसी वैदिक धर्म का है, जो तुम्हारी दुर्बलता के कारण जैन धर्म के अन्दर भी घुस बैठा हैं । अफसोस, जिस नीचता को तुम एक दिन अपने पड़ोसी के यहाँ पर भी नहीं रहने देना चाहते थे और इसके नाश के लिए समय-समय पर अपना वलिदान तक देते आए थे, वही नीचता आज तुम लोगों में पूर्ण रूप से स्थान पाए हुए है । यह कितनी अधिक लज्जा की बात है ? समझ लो, छुआछूत के कारण तुमने भगवान् महावीर के और अपने प्रभुत्व को कुछ घटाया ही है, वढ़ाया नहीं । भगवान् महावीर का जन्म दुखियों और दलितों के उद्धार के लिए ही हुआ था । उनके उपदेशों में इसी सेवा-धर्म की ध्वनि गूंज रही है । आज के अछूत सब से अधिक दुःखी हैं और नीच माने जाते हैं । अतः इनके लिए जो कुछ तुम कर सकते हो, करो और समस्त पृथ्वी पर से छुआछूत का अस्तित्व मिटा दो ।" - 'जैन - प्रकाश' में प्रकाशित युग-निर्माता : उपाध्याय अमर मुनि जी के तेजस्वी व्यक्तित्व ने स्थानकवासी समाज में नव-युग का निर्माण किया है । उन्होंने समाज को नया विचार, नया कर्म और नयी वाणी दी है । जीवन और जगत के प्रति वस्तु-तत्त्व को परखने सोचने और समझने का नया दृष्टिकोण दिया है । का समन्वयात्मक एक नया दृष्टि-विन्दु दिया है । जिस युग में साधु समाज और श्रावक वर्ग पुराने थोकड़ों और सूत्रों के टब्बे से आगे नहीं बढ़ पा रहा था, कवि जी ने उस युग में समाज में प्रखर पाण्डित्य और प्रामाणिक साहित्य की प्राण-प्रतिष्ठा करके नये मानव के लिए नये युग का द्वार खोला । उपाध्याय जी ने नयी भापा, नयी शैली और नयी
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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