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________________ ७६ व्यक्तित्व और कृतित्व उपदेश में जिस प्रकार ब्राह्मण आदि उच्च कुलों के लोग आते-जाते थे, ठीक उसी प्रकार चाण्डाल भी। वैठने के लिए कुछ पृथक्-पृथक् प्रवन्ध भी नहीं होता था । व्याख्यान सभा का सव से पहला कठोर, साथ ही मृदुल नियम यह था कि कोई किसी को अलग बैठने के लिए तथा वैठे हुए को उठ जाने के लिए नहीं कह सकता था। पूर्ण साम्यवाद का साम्राज्य था, जिसकी जहाँ इच्छा हो वहाँ बैठे, आज के समान कोई झिड़कने वाला तथा दुत्कारने वाला नहीं था। क्या मजाल, जो कोई जात्याभिमान में आकर कुछ आनाकानी कर सके। यह सव क्यों था? भगवान् महावीर वस्तुतः दीनवन्धु थे, उन्हें दीनों से प्रेम था। __ भगवान् महावीर के इन उदार विचारों तथा व्याख्यान सभा सम्वन्धी नियमों के सम्बन्ध में दो मुख्य घटनाएँ ऐसी हैं जो इतिहास के पृष्ठों पर सूर्य की तरह चमक रही हैं। नियम सम्बन्धी एक घटना भारत के प्रसिद्ध नगर राजगृह में घटित हुई है। राजगृह नगर के गुणशील वाग में भगवान् वीर प्रभु धर्मोपदेश दे रहे थे। समवसरण में जनता की इतनी अधिक भीड़ थी कि समाती न थी। स्वयं मगधपति महाराजा श्रेणिक सपरिवार भगवान् के ठीक सामने बैठे हुए उपदेश सुन रहे थे। इतने ही में एक देवता, राजा श्रेणिक की परीक्षा के निमित्त चाण्डाल का रूप धारण कर समवसरण में आया और राजा श्रेणिक के आगे जाकर बैठ गया। वहाँ पर भी निचला न बैठा, पुनः पुनः भगवान् के चरण-कमलों को हाथ लगाता रहा और अपना मस्तक रगड़ता रहा। इस व्यवहार से राजा श्रेणिक अन्दर ही अन्दर कुढ़ता रहा, किन्तु नियम सम्वन्धी विवशता के कारण प्रकट रूप में कुछ नहीं बोल सका। यह कथा आगे वहुत विस्तृत है। किन्तु अपना प्रयोजन केवल यहीं तक रह जाता है। इस घटना से पता लगाया जा सकता है कि उपर्युक्त सभा-सम्बन्धी नियम का किसं कठोरता के साथ पालन होता था । दलितों के प्रति उदारता वाली दूसरी घटना पोलासपुर की है। वहाँ के सकडाल नामक कुम्हार की प्रार्थना पर भगवान् महावीर स्वयं उसकी निजी कुम्भकार-शाला में जाकर टहरे थे। वहीं पर उसको मिट्टी के घड़ों का प्रत्यक्ष दृष्टान्त देकर धर्मोपदेश दिया और अपना शिष्य बनाया । भविष्य में यही कुम्हार भगवान् के श्रावकों में मुख्य हुआ एवं श्रावक संघ में बहुत अधिक आदर की दृष्टि से देखा गया। उपासक
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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