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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व धर्म नहीं। धर्म हैं-वैदिक-धर्म, जैन-धर्म, वौद्ध-धर्म। किन्तु, लोगों ने भ्रान्तिवश हिन्दू-जाति को हिन्दू-धर्म का नाम देना प्रारम्भ कर दिया । जव यह स्थिति सामने आई, तो जैनों की मनोवृत्ति को पृथक् होने की प्रेरणा मिली।" उपाध्याय श्री जी ने बतलाया कि-"आजकल जन-गणना का जो प्रश्न सामने है, उसके लिए जैनों ने अपने आप को जैन लिखाने का निर्णय किया है। इसके पीछे अविकार-लिप्सा या प्रात्म-रक्षा के लिए अन्य साधनों की मांग का कोई प्रश्न नहीं है। जैन-धम या जैन-संस्कृति को ऐसा कोई खतरा नहीं है, जिसके लिए अलग अधिकार प्राप्त किए जाएं। जैन-धर्म अधिकार में नहीं, योग्यता और कर्म-निष्ठा में विश्वास रखता है। यदि योग्यता है, तो अधिकार अपने आप चरण चूमते फिरेंगे और यदि योग्यता नहीं है, तो अयोग्य को मांगने से भी कहाँ अधिकार मिलते हैं ? अपने को जैन लिखाकर वे विदित करना चाहते हैं कि आज जनतंत्र भारत में जैनों की जन-संख्या कितनी है ? इससे उन्हें धर्म-प्रचार अथवा उनसे जीवित सम्पर्क स्थापित करने में सुविधा रह सकेगी।" "आपकी देख-रेख में भारतवर्ष के इतिहास का जो सम्पादन हो रहा था, आजकल उसकी क्या स्थिति है ?" उपाध्याय श्री जी के इस दूरदर्शितापूर्ण प्रश्न का उतर देते हुए राष्ट्रपति ने कहा-"वह प्रवृत्ति सूचारु रूप से चालू है। उसके दो भाग प्रकाश में आ चुके हैं। आगे के लिए एक महती एवं दायित्वपूर्ण संस्था के सदाग्रह से उस योजना का सम्बन्ध उसके साथ जोड़ दिया गया है।" __उपाध्याय श्री जी बोले- "उसमें जैन-युग को उचित स्थान मिलना चाहिए । अव तक जो इतिहास सम्वन्धी कार्य हुए हैं, उन सव में जेन-युग को वहुत ही गौण, नगण्य एवं भ्रान्त रूप में रखा गया है। कम से कम आगे तो वह न्याय की अपेक्षा रखता है।" राष्ट्रपति ने अत्यन्त गम्भीरता और धीरता से उत्तर देते हुए कहा-"अाज के इतिहासकारों को जैन-धर्म या जैन-संस्कृति की व्यापक एवं यथातथ्य जानकारी न होने के कारण ही. ये सव भ्रान्तियाँ और भूलें जन्म लेती हैं। इसके साथ-साथ मैं यह भी अनुभव करता हूँ कि
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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