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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व में हमने अपनी एक लम्बी मंजिल तय की है । इस विशाल और वास्तविक दृष्टिकोण से जैन भी 'हिन्दू' ही हैं - यह असंदिग्ध शब्दों में कहा सकता है । ६० परन्तु, जहाँ धर्म का प्रश्न आता है, वहाँ जैन अपने पड़ोसियों और साथियों से कुछ अलग पड़ जाता है ।" उसके धार्मिक विचार तथा आचार, वैदिक धर्म के आचार-विचार से भिन्न हैं । हिन्दू एक जाति है, धर्म नहीं | भारत के तीन ही प्रधान धर्म रहे हैं— जैन धर्म, वैदिकधर्म, श्रौर बौद्ध धर्म । दुर्भाग्य से, कुछ लोगों ने हिन्दू जाति को हिन्दूधर्म का नाम देना प्रारम्भ कर दिया । यह सब गलत बयानी भारतीय धर्म, संस्कृति और सभ्यता को न समझने के कारण हुई। जब यह स्थिति सामने ग्राई, तो जैनों के धार्मिक विचार तथा आचार को एक धक्का लगा और उसके परिणामस्वरूप उनकी मनोवृत्ति एवं विचार'धारा को पृथक होने की प्रेरणा मिली । वस्तुतः यदि भारतीय संस्कृति की विशुद्ध एवं निष्पक्ष भाषा में सोचा जाए, तो धार्मिक दृष्टि से जैन-जैन है और जातीय, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टिकोण से जैन - हिन्दू हैं । हिन्दू जाति के साथ उन्हें जीना है और उसी के साथ उन्हें मरना है कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते | पृथक् होकर व्यवहार नहीं चला सकते । । उससे अलग होकर वे एक वे अपना कोई भी जीवन : विशाल-दृष्टि : कवि जी के व्यक्तित्व की सब से बड़ी विशेषता है-- विशाल दृष्टि, उदार भावना और असाम्प्रदायिक विचार । कवि जी का व्यक्तित्व इतना विशाल और इतना विराट है, कि जो सव में रम चुका है, और जिसमें सबका समावेश हो गया है। जो बिन्दु में सिन्धु है और सिन्धु में विन्दु है । कवि जी एक व्यक्ति भी हैं, कवि जी एक समाज भी हैं । : कवि जी एक भी हैं, कवि जी अनेक भी हैं । कवि जी की दृष्टि विशाल है । कवि जी के विचार विराट हैं । कवि जी का व्यक्तित्व व्यापक है । कवि जी. सव में होकर भी अपने हैं, और अपने होकर भी सव के हैं । स्थानकवासी संस्कृति में उनका विश्वास ग्रडोल, अडिग और अमिट है । फिर भी वे किसी प्रकार के साम्प्रदायिक दुराग्रह-मूलक वन्धन से वद्ध
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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