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________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व की समस्याओं को सुलझाने के दायित्व को विस्मृत न होने दें। लघु मुनियों के साथ प्रेम-पूर्वक व्यवहार करने से वे आपकी प्राज्ञाओं का पालन अधिक वफादारी के साथ करेंगे। प्रेम से जो उन्हें सिखाया जा सकता है, वह प्रहार से नहीं। भूलें उनसे होती हैं, और होंगी। परन्तु सही दिशा की ओर संकेत करना, यह आपका दायित्व है । पिता के साथ पुत्र का विचार-भेद होना, कोई अनहोनी वात नहीं है। यह तो संसार का परम सत्य है। बुद्धिमान पिता विचार-भेद को मिटाने का भी सफल प्रयत्न कर सकता है। और नहीं, तो वह मनोभेद को तो रोक ही सकता है। विचार-भेद भयंकर नहीं है, भयंकर है मनोभेद । यह मनोभेद भी मिट सकता है, यदि छोटे वड़ों का विनय करें, और बड़े-छोटों का प्यार एवं दुलार करें तो। हमें विश्वास के साथ कहना चाहिए और मानना चाहिए, कि हमारे श्रमण-संघ के अधिनायक आचार्य श्री जी और उपाचार्य श्री जी संघ की श्रद्धा और भक्ति से समर्पित, सादड़ी के विशाल जन-समूह में ग्रहण की हुई अपनी 'प्राचार्य - उपाचार्य' की सफेद चादर पर विघटन का दाग नहीं लगने देंगे । उनके नेतृत्व में हम सब एक हैं। __उनके साथ हमारा विचार-भेद हो सकता है, परन्तु मनोभेद नहीं होना चाहिए । अपने मत-भेदों को भूल कर दोनों महापुरुषों के अनुशासन में होकर चलना-इसी में हमारी, संघ की एवं समाज की शान है। ____एक बात मैं और कह देना चाहता हूँ। हमारी विरोधी ताकतें भी हमें आगे न बढ़ने देने में पर्दे के पीछे जी जान से प्रयत्न कर रही हैं। आलोचना के तीखे वाण, निन्दा की शूली और आक्षेपों के अणुबम हमें मिलते ही रहे हैं, वरसते ही रहे हैं, और अभी भी वरसना बन्द भी नहीं होगा । उनके षड्यन्त्रों का कुचक्र चलता ही रहेगा । परन्तु यह निश्चित है, कि उनका आज का विरोध कल हमारा विनोद होगा। हमारा सामने का सीना और पीछे की रीढ़ विरोधी के सामने तनी रहनी चाहिए, झुकनी नहीं चाहिए। आज का भूला राही कल ठीक राह पर आ जाएगा। इसी दृष्टिकोण से हमें उन्हें नापना और देखना चाहिए।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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