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________________ प्रवहमान कविश्री जी महाराज का जीवन मन्द-मन्द प्रवाहित होने वाले मंदाकिनी के उस पावन-पवित्र प्रवाह की तरह है, जो अपने उभय पार्श्ववर्ती तटों का आसिञ्चन करता हुआ नित्य-निरन्तर प्रवहमान रहता है। उसके तट पर आने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपने तन के ताप को, और अपने मन के पाप को शान्त एवं क्षय करता है। जो भी उसके तट पर प्यास लेकर पहुँचता है, उसे वहाँ अवश्य सुख, सन्तोष और शान्ति मिलती है । मन्दाकिनी का वह अजन-स्रोत सदा प्रवाहशील ही रहता है। निरन्तर गति और उन्मुक्त भाव से दान-ये दोनों उसके सहज-स्वाभाविक कर्म हैं। उपाध्याय श्री कवि अमरचन्द्र जी महाराज का जीवन भी पावन-पवित्र उस नित्य प्रवाही मन्दाकिनी के प्रवाह के समान ही है। कुछ अन्तर है, तो केवल इतना ही कि केवल गंगा जल प्रदान करती है. और कविश्री जी ज्ञान । यह विमल ज्ञान-गंगा समाज के तापित और शापित जन-जीवन को सुख, सन्तोष और शान्ति प्रदान करती है। युग-युग से पीड़ित मानव-समाज को सुन्दर वरदान प्रदान करने वाली यह पतित-पावनी गंगा, आज भी भारत के सुदूर भू-भागों में स्थित जन-जीवन को नयी जागरणा, नयी प्रेरणा और स्फूति का भव्य दान देने में संलग्न है, कोई भी जिज्ञासु उन पावन चरणों में बैठकर पाकण्ठ ज्ञानामृत का पान कर सकता है। अागम, दर्शन, धर्म, संस्कृति, इतिहास-कुछ भी आप लेना चाहें. वह सब आपको वहाँ मिलेगा। संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश और अन्य प्रान्तीय भाषाओं का परिज्ञान आप प्राप्त कर सकते परन्तु कविश्री जी का कवित्व वस्तुतः अध्यात्म-ज्ञान में ही प्रस्फुटित होता है। शंका का समाधान, प्रश्न का उत्तर और जिज्ञासा का प्रतिवचन आपको अवश्य ही अधिगत होगा। उस अमृत-योगी के पास पहुँचकर आप अपने विकास के लिए वहाँ वहुत-कुछ पा सकते हैं। जो आपको अन्यत्र नहीं मिलता, वह आपको वहाँ मिलेगा। व्यक्तित्व और कृतित्व' में उनके इसी उदात्त और विशाल रूप को संक्षेप में रखने का प्रयत्न किया गया है। यह उनके 'व्यक्तित्व
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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