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________________ बहुमुखी कृतित्व २११ को लक्ष्य में रखकर एक ऐसी संस्था की स्थापना की जाए, जिसके द्वारा प्राचीन और अर्वाचीन-दोनों ही प्रकार का साहित्य-भाव, भाषा तथा मुद्रण-कला की दृष्टि से सर्वाङ्ग सुन्दर प्रकाशित किया जाए। सौभाग्य से उपाध्याय श्री जी का चातुर्मास अव की वार सन् १९४५ में हमारे यहाँ आगरा क्षेत्र में हुआ । चातुर्मास में कितने ही सज्जनों की ओर से व्यक्तिगत पुस्तकें छपाने के लिए उपाध्याय श्री जी से प्रार्थनाएं की गई। इस पर महाराज श्री जी ने अपने विचार जैन-संघ के समक्ष रखे, जिसके फलस्वरूप यह 'सन्मति ज्ञानपीठ' के नाम से सुन्दर प्रकाशन संस्था स्थापित की गई है। महाराज श्री की प्रेरणा का यह मूत्तं रूप, आज सव सज्जनों के समक्ष है । अभी यह संस्था अपनी शैशव अवस्था में ही है, अथवा यों कहना चाहिए कि जन्म ही हुआ है। परन्तु अभी से इसे उत्साही सज्जनों का जो सहकार एवं सहयोग तन-मन-धन से प्राप्त हो रहा है, उसे देखकर दृढ़ धारणा होती है कि निकट भविष्य में ही यह संस्था-एक आदर्श प्रकाशन संस्था के रूप में परिणत हो जाएगी। इसे हम केवल प्रकाशन संस्था के रूप में ही नहीं, बल्कि ज्ञान-प्रचार के विविध क्षेत्रों में भी प्रगतिशील देखना चाहते हैं। यह संस्था विना किसी साम्प्रदायिक भेद-भाव के समस्त जैन समाज की सेवा करने का संकल्प रखती है। अतः आशा ही नहीं, दृढ़ विश्वास है कि जैन-जगत् के धनीमानी तथा विचारक विद्वान् इस अादर्श आयोजन में यथाशक्य सक्रिय सहयोग देकर संस्था को सब प्रकार से सवल, सुदृढ़ बनाने का प्रयत्न करेंगे।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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