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________________ बहुमुखी कृतित्व १६६ हृदय में अव भी चमक रही हैं । ऐसे भाषण न केवल व्यक्ति के जीवन को ही, वरन् समाज और राष्ट्र को भी हिमालय की बुलन्दियों पर पहुँचा सकते हैं ।" कवि श्री जी की प्रवचनन - शैली के कुछ उद्धरण मैं यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ " श्रमण-संस्कृति के अमर देवता भगवान् महावीर का सन्देश है— 'क्रोध को क्षमा से जीतो, अभिमान को नम्रता से जीतो, माया को सरलता से जीतो और लोभ को सन्तोष से जीतो ।' जव हमारा प्रेम विद्व ेष पर विजय कर सके, हमारा अनुरोध विरोध को जीत सके और साधुता - ग्रसाधुता को झुका सके, तभी हम धर्म के सच्चे अनुयायी, सच्चे मानव बन सकेंगे । श्रमण संस्कृति की गम्भीर वाणी हजारों वर्षो से जन-मन में जती रही है कि - 'यह अनमोल मानव-जीवन भौतिक जगत् की अंधेरी गलियों में भटकने के लिए नहीं है । भोग-विलास की गन्दी नालियों में कीड़ों की तरह कुलबुलाने के लिए नहीं है । मानव ! तेरे जीवन का लक्ष्य तू स्वयं है— तेरी मानवता है । वह मानवता, जो हिमालय की बुलन्द चोटियों से भी ऊँची तथा महान् है । क्या तू इस क्षणभंगुर संसार की पुत्रैषणा, वित्तेषणा और लोकेषणा की भूली-भटकी, टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर ही चक्कर काटता रहेगा ? नहीं ! तू तो उस मंजिल का यात्री है, जहाँ पहुँचने के वाद आगे और चलना शेष ही नहीं रह जाता है । " इस जीवन का लक्ष्य नहीं है, श्रान्ति-भवन में टिक रहना । किन्तु पहुँचना उस सीमा तक, जिसके आगे राह नहीं ॥" आज सब ओर अपनी-अपनी संस्कृति और सभ्यता की सवंश्रेष्ठता के जयघोष किए जा रहे हैं । मानव संसार संस्कृतियों की मधुर कल्पनाओं में एक प्रकार से पागल हो उठा है । विभिन्न संस्कृति एवं सभ्यताओं में परस्पर रस्साकशी हो रही है । परन्तु कौन संस्कृति श्रेष्ठ है, इसके लिए एक प्रश्न ही काफी है, यदि इसका उत्तर ईमानदारी से दे दिया जाए तो । वह प्रश्न है कि - " क्या आपकी
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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