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________________ १८६ ४. ५. ६ ७. व्यक्तित्व और कृतित्व गुरुदेव की भक्ति करना । धर्म की पुस्तकें पढ़ना । भूखों को भोजन देना । रोगी की सेवा करना । द्वितीय भाग — इसमें सत्तरह पाठ दिए गए हैं, जिसमें नवकार मंत्र की महिमा तथा उपासना के लाभ वताए गए हैं। चौवीस तीर्थङ्करों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । वीर भामाशाह, भगवान् महावीर तथा सोमा सती का संक्षिप्त परिचय दिया गया है । प्रश्नोत्तर पाठ में सात कुव्यसनों के परित्याग के सम्बन्ध में लिखा गया है । तृतीय भाग - इसमें उन्नीस पाठ दिए गए हैं । जीव और जीव के सम्बन्ध में सामान्य परिचय दिया गया है । भारतवर्ष क्या है ? और इसका नाम भारत क्यों पड़ा ? इस सम्वन्ध में जैन-संस्कृति की दृष्टि से कहा गया है"आज से लाखों वर्ष पहले यहाँ ऋषभदेव भगवान् हुए थे । उन्होंने ही सारी दुनिया को शस्त्रास्त्र चलाना, लिखना पढ़ना, कृपि करना आदि अनेक प्रकार की विद्याएँ, व्यापार और शिल्प सिखाया था । उनके बड़े पुत्र का नाम भरत था । भरत बड़े प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट् थे । उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम 'भारतवर्प' पड़ गया ।" सुवोध भाषा में अच्छा सम्बन्ध में बच्चों का सीता, नल-दमयंती, पाँच इन्द्रियों के विषय में सरल और परिचय दिया गया है । रात्रि भोजन के दोपों के ध्यान विशेष रूप से खींचा गया है। महारानी और राजा मेघरथ की कहानी विशेष रूप से बच्चों के मन को यापित करेगी। इसके अतिरिक्त दिवाली जैसे पर्व भी सरल भाषा में लिख कर बच्चों को उसका महत्त्व वताया है । चतुर्थ भाग — इसमें विचार और ग्राचार का सुन्दर समन्वय किया गया है । नव तत्त्व जैसे गंभीर विषय को अत्यंत सरल भापा में प्रस्तुत किया है । जीवों के भेद, जीवों की पाँच जाति और चार गति यादि ताविक विषयों को सरल रीति से बताया गया है। इसके अतिरिक्त भगवान् पार्श्वनाथ, भगवान् नेमिनाथ, राजमती, चन्दन वाला, कालका
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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