SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वतोमुखी व्यक्तित्व वीरता है। उन्हें अपने मनोवल पर विश्वास है। दूसरे के बल पर . वे कभी कोई काम नहीं करते । दूसरे के सहयोग का वे सत्कार अवश्य करते हैं। विपत्ति पाती है, पर उनके साहस को देख कर लौट जाती है। तूफान पाता है, उनकी दृढ़ता को देख कर लौट जाता है। वे अपने पथ पर सदा अडिग होकर चलते हैं। वे मानव हैं, पर मानव होकर भी देव हैं । अपने प्रभु और अपने सेवक : वे कभी किसी पर अपना प्रभुत्व नहीं थोपते। परन्तु दूसरे के प्रभुत्व को भी वे कभी सहन नहीं करते। उनकी आज्ञा को वरदान मानकर उसका पालन करने वाले उनके शिष्य हैं, परिवार के अन्य सन्त भी हैं। सेवा के सभी साधन होने पर भी वे किसी काम के लिए आदेश नहीं देते। दूसरे को कहने की अपेक्षा उन्हें स्वयं काम करने में अधिक आनन्द प्राता है । अपने स्वयं के लिए और आवश्यकता पड़ने पर किसी भी साधु-सन्त की सेवा के लिए आलस्य, प्रमाद एवं अशक्ति की अनुभूति नहीं करते। पढ़ना और पढ़ाना, लिखना और लिखवाना तथा विचार-चर्चा करने में वे कभी भी सुस्ती का अनुभव नहीं करते। दिन में कभी भी आप उनकी सेवा में जाकर देखिए-वे कुछ लिखते, कुछ पढ़ते अथवा कुछ विचार चर्चा करते हुए ही आपको मिलेंगे। वे इतने परिश्रम-शील हैं, कि अपने जीवन का एक क्षण भी वे व्यर्थ नहीं खोना चाहते । दिन में अधिकतर वे पढ़ने और लिखने का काम करते हैं। रात्रि में ध्यान, चिन्तन और स्वाध्याय करते हैं। आज भी ग्रन्थ के ग्रन्थ उनके मुखाग्न हैं, याद हैं। सारी रात व्यतीत हो जाने पर भी उनकी वाग्धारा वन्द न होगी। वे चलते फिरते पुस्तकालय हैं। आगम, दर्शन और धर्म-विषयक ग्रन्थों के उद्धरण आप उनसे कभी : भी पूछ सकते हैं। वे आपको प्रसंग-सहित और स्थल-सहित वता देंगे। यह कोई दैवी चमत्कार नहीं है। यह उनका अपना श्रम है। अपनी लगन है। अपना अव्यवसाय है। उन्होंने जो कुछ भी अपने जीवन का विकास किया है, वह अपने परिश्रम के बल पर ही किया है। अतः वे अपने प्रभु पाप हैं, वे अपने सेवक आप हैं।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy