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________________ १७२ व्यक्तित्व और कृतित्व साधना का शुद्ध लक्ष्य है--मनोगत विकारों को पराजित कर सर्वतोभावेन आत्म-विजय की प्रतिष्ठा । अतएव जैन-धर्म की साधना का आदिकाल से यही महाघोप रहा है कि एक (आत्मा का अशुद्ध भाव) के जीत लेने पर पांच क्रोधादि चार कपाय और मन जीत लिए गए, और पाँचों के जीत लिए जाने पर दश (मन, कषाय और पाँच इन्द्रिय। जीत लिए गए। इस प्रकार दश शत्रुओं को जीत कर, मैंने जीवन के समस्त शत्रुओं को सदा के लिए जीत लिया है। ____साधना : एक सरिता-जैन-धर्म की साधना विधिवाद और निपेधवाद के एकान्त अतिरेक का परित्याग कर दोनों के मध्य से होकर वहने वाली सरिता है। सरिता को अपने प्रवाह के लिए दोनों कूलों के सम्वन्वातिरेक से बचकर यथावसर एवं यथास्थान दोनों का यथोचित स्पर्श करते हुए मध्य में प्रवहमान रहना आवश्यक है । किसी एक कूल की ओर ही सतत वहती रहने वाली सरिता न कभी हुई है, न वर्तमान में है, और न कभी होगी। साधना की सरिता का भी यही स्वरूप है । एक ओर विधिवाद का तट है, तो दूसरी ओर निषेधवाद का । दोनों के मध्य में से वहती है-साधना की अमृत सरिता । साधना की सरिता के प्रवाह को अक्षुण्ण वनाए रखने के लिए जहाँ दोनों का स्वीकार आवश्यक है, वहाँ दोनों के अतिरेक का परिहार भी आवश्यक है। विधिवाद और निपेधवाद की इति से बचकर यथोचित विधि-निषेध का स्पर्श कर समिति-रूप में वहने वाली साधना की सरिता ही अन्ततः अपने अजर-अमर-अनन्त साध्य में विलीन हो सकती है। उत्सर्ग और अपवाद-साधना की सीमा में प्रवेश. पाते ही साधना के दो अंगों पर ध्यान केन्द्रित हो जाता है-"उत्सर्ग तथा अपवाद ।" ये दोनों अंग साधना के प्राण हैं। इनमें से एक का भी-अभाव हो जाने पर सावना अधूरी है, विकृत है, एकांगी है, एकान्त है। जीवन में एकान्त कभी कल्याणकर नहीं हो सकता, क्योंकि वीतराग-देव संलण्ण पथ में एकान्त मिथ्या है, अहित है, अनुभङ्कर है । मनुष्य द्विपद प्राणी है, अतः वह अपनी यात्रा दोनों पदों से ही भली-भाँति कर सकता है। एक पद का मनुष्य लंगड़ा होता है । ठीक, साधना भी अपने दो पदों से ही सम्यक् प्रकार से गति कर सकती है। उत्सर्ग और अपवादसाधना के दो चरण हैं। इनमें से एकतर चरण का भी अभाव, यह
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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