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________________ बहुमुखी कृतित्व १५६ वस, ढिढोरा पिटवा दिया गया - ' जिसने रात्रि में, खजाने में चोरी की हो, वह राजा के दरबार में हाजिर हो जाए ।' लोगों ने ढिढोरा सुना तो वतियाने लगे-- ' राजा पागल तो नहीं हो गया है ? कहीं इस तरह भी चोर पकड़े गए हैं ? चोर राजदरवार में स्वयं ग्राकर कैसे कहेगा कि मैंने खजाने में चोरी की है । वाह री बुद्धिमत्ता !" - ( कथोपकथन ) " एक राजकुमार घोड़े पर सवार होकर, अस्त्र-शस्त्र से लैस और लाखों की कीमत के अपने ग्राभूषण पहन कर सैर करने को चला । आगे बढ़ा तो देखा कि गाँव के बाहर मन्दिर है और वहाँ भीड़ लगी है । वह उसी ओर गया और पास पहुँच कर, घोड़े को पानी पिलाकर पास ही एक वृक्ष से बाँध दिया। खुद भी पानी पीकर छाया में सुस्ताने लगा । उसने देखा कि सामने भीड़ में एक उपदेशक व्याख्यान दे रहे थे । उन्होंने कहा—‘संसार, क्षणभंगुर है । यह जवानी फूलों का रंग है, जो चार दिन चमकने के लिए है । और यह जीवन ग्रात्म-कल्याण करने के लिए मिला है । यह शरीर क्या है? लाश है ! मिट्टी है ! हड्डियों का ढांचा है । इससे खेती की, तो मोतियों की खेती होगी, नहीं तो यह लाश सड़ने के लिए है !" - ( प्रारम्भ ) "मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त भारतवर्ष के वड़े ही प्रभावशाली सम्राट् हुए हैं । भारतवर्ष का गौरव, इनके राज्य में बहुत ऊँचाई पर पहुँचा हुआ था । इनके राज्य की सीमा काबुल कंधार तक फैली हुई थी । ये पाटलीपुत्र ( पटना ) के राजा थे। इन्होंने यूनान देश के सम्राट् सैल्यूकस को युद्ध में पराजित किया था और सैल्यूकस की पुत्री हेलन के साथ विवाह किया था ।" - ( आरम्भ ) "सोने का सिंहासन बहुत बुरा है । इस पर बैठ कर अच्छे-अच्छे देवता भी राक्षस हो जाते हैं । वनवीर कुछ दिन तो न्याय-नीति से 'राज-काज करता रहा, परन्तु ग्रागे चलकर उसके हृदय में स्वार्थ का भूत हुड़दंग मचाने लगा । 'मैं ही क्यों न सदा के लिए राजा बन जाऊँ ?"
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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