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________________ बहुमुखी कृतित्व १४५ की स्वतंत्रता देखते ही देखते स्वप्न हो गई है। प्रतिदिन हजारों नौजवान युद्ध के मैदान में खून की होली खेलते हुए कराल काल के गाल में पहुँच रहे हैं। इंगलैण्ड का बच्चा-बच्चा विजय पाने की धुन में अपने राष्ट्र के लिए सर्वस्व निछावर करने को तैयार है । परन्तु यहाँ भारत में अंग्रेज महिलाएं अपनी उन्हीं पुरानी रंग-रेलियों में मस्त हैं, वही सजधज, वही राग-रंग, वही नाज-नखरे, वही रस-भरे कह-कहे ! युद्ध में विजय पाने के लिए देश के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को अपने जीवन में विलासिता के स्थान में कर्मठता लाने की आवश्यकता है।" __ "मार्ग में यह अँग्रेज वालक, पाँच-छः वर्ष का, मुख-पत्ती की ओर संकेत करके पूछ रहा है कि-'वावा! .यह क्या लगाया हुआ है ?' कहिए, इसे मुख-वस्त्रिका की क्या फिलासफी समझाएं ? इसकी जिज्ञासा-वृत्ति पर हमें बड़ी प्रसन्नता है, किन्तु यह पूर्ण तथ्य को समझ कैसे सकता है ? मैंने संक्षेप में समझाते हुए कहा-'भइया ! हम जैन साधु हैं, यह हमारी निशानी है।' इतने में ही एक प्रौढ़ अंग्रेज महिला इधर आ निकली हैं। इनको भी मुख-वस्त्रिका के सम्बन्ध में उत्कट जिज्ञासा है। हां, इन्हें खूब अच्छी तरह समझा दिया है, और इस पर ये बड़ी प्रसन्न हैं..."
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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