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________________ बहुमुखी कृतित्व विशेप निजीपन, स्वतन्त्रता, सौष्ठव, संजीवता, आवश्यक संगति और सभ्यता के साथ किया गया हो ।" स्वाभाविकता के साथ अपने भावों को प्रकट कर देना, जिसमें दर्पण के प्रतिविम्ब की तरह लेखक का व्यक्तित्व झलक उठे-निवन्ध की सच्ची कसौटी है। निवन्ध लिखने के लिए पाँच तत्त्वों को आवश्यकता है-- १. लेखक का व्यक्तित्व आकर्षक हो । २. लेखक का हृदय संवेदन-शील हो । ३. लेखक में सूक्ष्म निरीक्षण की असाधारण शक्ति हो । ४. लेखक में जीवन की विशद एवं स्पष्ट अनुभूति हो । ५. लेखक को मनुप्य तथा समाज की रीति-नीति एवं परम्परा का सजीव परिचय हो । निवन्ध को गद्य में अभिव्यक्त एक प्रकार का 'स्वगत-भाषण' भी कहा जा सकता है। उसमें लेखक का व्यक्तित्व प्रधान होने के कारण लेखक के विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति का होना भी परम आवश्यक माना गया है। इस आधार पर निवन्ध की सबसे सुन्दर परिभाषा इस प्रकार है-"निवन्ध गद्य-काव्य की वह विधा है, जिसमें लेखक एक सीमित आकार में इस विविध-रूप जगत् के प्रति अपनी भावात्मक तथा विचारात्मक प्रतिक्रियाओं को प्रकट करता है।" मुख्य रूप में निबन्ध-कला के दो भेद हैं-१. भावात्मक, और २ विचारात्मक । भावात्मक निबन्धों में लेखक किसी वस्तु का विवेचन अपनी वृद्धि और तर्कशक्ति से नहीं करता, अपितु अपने हृदय की भावनाओं एवं सरस अनुभूतियों के रङ्ग में प्रस्तुत करके पाठक की हृदय-तन्त्री को छेड़ देता है। विचारात्मक निबन्धों में चिन्तन, विवेचन और तर्क की प्रधानता रहती है। इस प्रकार के निबन्धों में लेखक के व्यक्तिगत दृष्टिकोण से किसी एक वस्तु की तर्कपूर्ण और चिन्तन-शील अनुभूति की अभिव्यक्ति प्रकट होती है । भावात्मक निबन्ध : - शैली की दृष्टि से भावात्मक निवन्ध दो भागों में विभक्त किए जा सकते हैं.-१. धारा-शैली के निवन्ध, और २ विक्षेप-शैली के निबन्ध । प्रथम प्रकार के निवन्धों में भावों का क्रमशः विकास और भाषा की
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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