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________________ १२० कति चोट ि की गीगा में ही पाणि 1 इसमें का परिचय देवा -- "मिने यदि न लेगा तभी गण उप मेरे गंजी गाना | विक अपना शु कुछ मदन मगर मित्र न निभाएगा। जीवन की मुगवत नाग मेगा तुझे करना ही गो प्रदन निजगर की महिमानी ।" हो गई। द उल वकील की रानी के पतिव्रता सेठानी मनोरमा ने पति पर पूर्ण ही भगवान भजन में अपना मन लगा दिया था । पूर्वक "सागरी संयारा अति ही ॠण किया। एकमात्र जिनराज भजन में अविचल नियमन गोया ॥" " 'धर्मवीर सुदर्शन' में कविजी के प्राध्यात्मिक भावों की भी सुन्दर झलक हमें देखने को मिलती है । अध्यात्म से राजा तो क्या, मात विश्व नत मस्तक हो जाता है। हृदय के कुविचारों की शान्ति के लिए मानव-मन को अध्यात्म का ही सहारा लेना श्रेयस्कर है। इ कुविचारों का नाश होता है और जीवन परमात्मा की लय में लीन हो जाता है । सेठ सुदर्शन भी झूली पर जाने से पहले कुछ ऐसा ही उपदेश जनता को देते हैं- "राज तो क्या, अखिल विश्व भी नतमस्तक हो जाता है । आध्यात्मिकता का जब सच्चा भाव हृदय में जाता है | " कवि ने उन महापुरुषों की वन्दना की है, जो मृत्यु का आह्वान भी हँसते हुए करते हैं, जिन्हें सत्य के पथ से मौत भी कभी नहीं दिगा सकती है । धर्मवीर सुदर्शन एक ऐसा ही साधक था और कवि ने उसकी निर्भीकता का वर्णन इस प्रकार किया है "जीवन पाने पर तो सारी दुनियां वन्दनीय वह जो मरने पर भी x X हड़ हड़ हंसती है । रखता मस्ती है |" x
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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