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________________ ११५ वहुमुखी कृतित्व अमर काव्य के बिखरे फूल : 'विखरे फूल' शीर्षक से मैं कवि के उन गीतों तथा दोहों को प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ, जो जीवन के लिए उपदेश के रूप में कहे गए हैं अथवा कुछ घृणित आदतों का परिणाम इसमें व्यक्त है। कविवर 'सुभापित' नाम से कुछ उपदेश जो मानव हित के लिए अति आवश्यक हैं, इस प्रकार दिए हैं "अकेला भूल करके भी नहीं अभिमान आता है, भयंकर संकटों का संघ अपने साथ लाता है। मूर्ख का अन्तःकरण रहता सदा ही जीभ पर, दक्ष के अन्तःकरण पर जीभ रहती है प्रवर । क्लेश नौका-छिद्र ज्यों प्रारम्भ में ही मेट दो, अन्यथा सर्वस्व की कुछ ही क्षणों में भेंट दो। भंग मर्यादा हुए पर दुर्दशा होती बड़ी, बाग से बाहिर झुका तरु भी व्यथा पाता कड़ी। उड़ रही थी व्यर्थ की गप-शप कि घंटा बज गया, मौत का जालिम कदम एक और आगे बढ़ गया। दुर्जनों की जीभ सचमुच ही नदी की धार है, • स्वच्छ सम ऊपर से, अन्दर से भीम-भय भंडार है। छेडिए तो उसको जिसका शस्त्र तीर-कमान है, पर उसे मत छेडिए जिसका शस्त्र जवान है।" प्रस्तुत दोहों में कवि श्री जी की विद्वत्ता तथा काव्य-प्रेम का संकेत पग-पग पर मिल जाता है। कविवर ने 'अनेकान्त-दृष्टि' शीर्षक से कुछ अनुकूल चीजों की प्रतिकूलताओं का भी बड़ा ही सुन्दर वर्णन किया है "सरिता तट-वर्ती नगरों को, रहता है आनन्द अपार । किन्तु बाढ़ में वही मंचाती, प्रलय काल-सा हा-हाकार ॥
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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