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________________ ११० व्यक्तित्व और कृतित्व "जैन वीरो सव भजो उस वीर स्वामी को सदा, ध्यान में रखो उसी के सद्गुणों को सर्वदा।" जिस प्रकार हिन्दी साहित्याकाश के सूर्य सूरदास ने बालकृष्ण का मनोहारी वर्णन करके शेप, सुरेश और नरेश आदि सभी को कृष्ण-भक्त बनाया है, वही भाव अमर काव्य में हमें प्रस्तुत पद्य में मिलते हैं"शान्ति सुधा-रस के वर सागर, क्लेश अप, समूल संहारी। लोक, अलोक विलोक लिए, जग लोचक केवल-ज्ञान के धारी, शेप सुरेश नरेश सभी, प्रण में पद पंकज वारम्वारी । वीर जिनेश्वर, धर्म जिनेश्वर, मंगल कीजिए, मंगलकारी ।" कवि श्री जी भगवान् महावीर को विश्व-वन्दनीय कहते हैं । भगवान् महावीर महान् थे, संसार की क्षण-भंगुरता को देखकर उन्होंने राजपाट, घर-द्वार आदि सव का त्याग किया। उसी विश्ववन्दनीय वीर की आवाज को कवि जन-जागृति का माध्यम बनाता है , "क्रान्ति का वजा के सिंहनाद धीर गर्जना से, आलस्य संहार देश सोते से जगाया है।" संसार में कवि श्री जी केवल भगवान महावीर को ही एकमात्र आधार मानते हैं "प्रभो वीर! तेरा ही केवल सहारा, जगत में न कोई शिवंकर हमारा ।" भगवान् महावीर के समय की परिस्थितियों का वर्णन कवि ने "जगत्-गुरु महावीर" में किया है। भगवान् महावीर ने अत्यन्त अशान्ति, घोर अराजकता के युग में जन्म लेकर मानव मात्र को शान्ति का सन्देश दिया था। उनके समय की परिस्थितियों में उनके धर्म-प्रचार, विश्वमैत्री, विश्व-वन्धुत्व आदि की भावनाओं का मानव हृदय पर पूर्ण प्रभाव पड़ा। कवि ने उस समय की परिस्थितियों का वर्णन इस प्रकार किया है
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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