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________________ व्यक्तित्व और कृतित्व अमर संस्कृति मानो आज ज्योतिहीन होकर अंधकार में भटक रही हो, और ऐसे समय में कवि भारत माँ के लालों को जगाकर भारत में नव-जीवन फ़क देना चाहता होकवि की कविता का सारांश है। क्योंकि कवि ने एक काव्य की रचना से पूर्व वुद ही लिखा है-"कविता अन्तःप्रेरणा है, उसका उद्देश्य है-जन-मन को जागृत करना।" और उन्हीं भावनाओं के वशीभूत होकर कवि ने गीत लिन्वे हैं, और अन्ततः कवि अपने प्रयास में सफल रहा है । कवि श्री जी के गीतों को एकान्त में बैठकर आध्यात्मिकता के साथ गुनगुनाने से उनका तथ्य समझ में आता है और कवि श्री जी ने ऐसे ही साधकों के लिए गीतों की रचना की है। कवि जी के काव्य का प्रवल पक्ष तो अव्यात्मवाद ही है। भगवान महावीर की महिमा तथा स्तुति में यद्यपि 'अमर-काव्य' भरा हुआ है, तदपि उसमें जीवन के पहलुओं की व्याख्या भी बड़े रोचक ढंग से मिलती है। कवि श्री जी के काव्य-ग्रन्यों में 'सत्य हरिश्चन्द्र', 'धर्मवीर सुदर्शन', 'अमर माधुरी', अमर जैन-पुप्पांजलि' आदि प्रमुख हैं। कवि श्री का एक काव्य-संगीत प्रधान काव्य 'संगीतिका' भी वडा लोक-प्रिय रहा है। कवि श्री जी ने मानव-जीवन मे अहितकर वस्तयों का सर्वथा निषेध बताया है। मानव-जीवन एक अमूल्य देन है, किसी अदृश्य शक्ति की ओर उसका दुरुपयोग करने का मानव को कोई अधिकार नहीं। मद्य-निषेध, भंग-तमाखू-हुक्का आदि समस्त नशीली वस्तुओं का त्याग वताते हए अमर कवि ने सव के ऊपर गीत लिखे है । आधुनिक युग में चाय का सेवन निषेध बताकर यद्यपि कवि ने आधुनिक समाज को चैलेन्ज-सा कर दिया है, किन्तु नीचे की टिप्पणी में यह कहकर उसका स्पष्टीकरण भी किया है कि चाय में 'थीन' नामक और काफी में 'फिन' नामक जहर होता है, अथवा डा० स्मिथ की परिभापा है - "चाय पीने से शरीर की गर्मी कम हो जाती है, गुर्दे की गति बढ़ जाती है । अधिक मात्रा में चाय पीने से आदमी बेहोश हो जाता है और अन्त में मृत्यु हो जाती है।" इन निषेधों की झलक कवि श्री जी के गीतों में इस प्रकार मिलती है।
SR No.010597
Book TitleAmarmuni Upadhyaya Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaymuni Shastri
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1962
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & Literature
File Size10 MB
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