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________________ ५८ प्रतिक्रमण सूत्र। * इकोवि नमुकारो, जिगरवसहस्स वद्धमाणस्स । ___ संसारसागराओ, तारेइ नरं व नारिं वा ॥३॥ अन्वयार्थ---'जिणवरवसहस्स' जिनों में प्रधान भूत 'वद्धमाणस्स' श्रीवर्धमान को [ किया हुआ ] 'इक्कोवि' एक भी 'नमुक्कारो' नमस्कार 'नरं' पुरुष को 'वा' अथवा 'नारिं' स्त्री को 'संसारसागराओ' संसाररूप समुद्र से 'तारेइ' तार देता है ॥३॥ भावार्थ----जो देवों का देव है, देवगण भी जिस को हाथ जोड़ कर आदर पूर्वक नमन करते हैं और जिस की पूजा इन्द्र तक करते हैं उस देवाधिदेव महावीर को सिर झुका कर मैं नमस्कार करता हूँ। जो कोई व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री भगवान् महावीर को एक वार भी भाव पूर्वक नमस्कार करता है वह संसार रूप अपार समुद्र को तर कर परम पद को पाता है॥२॥ ॥३॥ [अरिष्टनेमि की स्तुति ] + उज्जितसेलसिहरे, दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स । तं धम्मचक्कवट्टि, अरिहनेमि नमसामि ॥४॥ * एकोऽपि नमस्कारो जिनवरवृषभस्य वर्द्धमानस्य । संसारसागरात्तारयति नरं वा नारी वा ॥३॥ + उज्जयन्तशैलशिखरे दीक्षा ज्ञानं नषेधिकी यस्य । तं धर्मचक्रवत्तिनमरिष्टनेमि नमस्यामि ॥४॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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