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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । जिनोक्त सिद्धान्त में ही निःसन्देह रीति से वर्तमान है । जगत के मनुष्य असुर आदि सब प्राणिगण जिनोक्त सिद्धान्त में ही युक्ति ममाण पूर्वक वर्णित हैं । हे भव्यों ! ऐसे नय-प्रमाण-सिद्ध जैन सिद्धान्त को मैं आदर-सहित नमस्कार करता हूँ। वह शाश्वत सिद्धान्त उन्नत होकर एकान्त वाद पर विजय प्राप्त करे, और इस से चारित्र-धर्म की भी वृद्धि हो । ___ सुअस्स भगवओ करेमि काउस्सग्गं वंदण-वत्तियाए इत्यादि०॥ अर्थ-मैं श्रुत धर्म के वन्दन आदि निमित्त कायोत्सर्भ करता हूँ। २३-सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र । __ [ सिद्ध की स्तुति ] * सिद्धाणं युद्धाणं, पारगयाणं परंपरगयाणं । लोअग्गमुवगयाणं, नमो सया सव्वसिद्धाणं ॥१॥ १-इस सूत्र की पहली तीन दी स्तुतिओं की व्याख्या श्रीहरिभद्रसूरि ने की है, पिछली दो स्तुतिओं की नहीं । इस का कारण उन्होंने यह बतलाया है कि “पहली तीन स्तुतियाँ नियम पूर्वक पढ़ी जाती हैं, पर पिछली स्तुतियाँ नियम पूर्वक नहीं पढ़ी जाती । इसलिये इन का व्याख्यान नहीं किया जाता (आवश्यक टीका पृ० १११, ललितविस्तरा पृ०११२)। * सिद्धेम्यो बुद्धेभ्यः पारगतेभ्यः परम्परागतेभ्यः । लोकाप्रमुपगतेभ्यो, नमः सदा सर्वासदेभ्यः १॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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