SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४ प्रतिक्रमण सूत्र । पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं, भत्ती वन्दे सिद्धि माणं ॥ १ ॥ अन्वयार्थ' कलाकन्दं ' कल्याण के मूल ' पढमं ' प्रथम ' जिणिदं ' जिनेन्द्र को ' संतिं ' श्री शान्तिनाथ को, " मुणिंद ' मुनियों के इन्द्र ' नेमिजिणं' श्रीनेमिनाथ को, ' पयासं' प्रकाश फैलाने वाले 'पास' श्रीपार्श्वनाथ को ' तओ ' तथा 'सुगुणिकठाणं ' सद्गुण के मुख्य स्थान- भूत 'सिविद्धमाणं ' श्रीबद्धमान स्वामी को 'भक्तीइ' भक्ति पूर्वक 'वंदे' वन्दन करता हूँ । भावार्थ - [ कुछ तीर्थङ्करों की स्तुति ] कल्याण के कारण प्रथम जिनेश्वर श्री आदिनाथ, श्री शान्तिनाथ, मुनिओं में श्रेष्ठ श्री नेमिनाथ, अज्ञान दूर कर ज्ञान के प्रकाश को फैलाने वाले श्रीपार्श्वनाथ और सद्गुणों के मुख्य आश्रय-भूत श्रीमहावीर इन पाँच तीर्थङ्करों को मैं भक्ति पूर्वक वन्दन करता हूँ || १॥ * अपारसंसारसमुपाद्दरं, पत्ता सि दिन्तु सुकसारं । सव्वे जिनिंदा सुरविंदवंदा, कल्लाणवलीण विसालकंदा ||२|| * अपारसंसारसमुद्रपारं प्राप्ताः शिवं ददतु शुच्येकसारम् । सर्वे जिनेन्द्राः सुरवृन्दवन्द्याः कल्याणवल्लीनां विशालकन्दाः ॥२॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy