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________________ जावंति चेइआई। रहित, अचल, रोगरहित, अनन्त, अक्षय, व्याकुलता-रहित और पुनरागमन रहित ऐसे मोक्ष स्थान को प्राप्त हैं। ____ सब प्रकार के भयों को जोते हुए जिनेश्वरों को नमस्कार हो । __जो सिद्ध अर्थात् मुक्त हो चुके हैं, जो भविष्य में मुक्त होने वाले हैं तथा वर्तमान में मुक्त हो रहे हैं उन सब-त्रैकालिक सिद्धों को मैं मन, वचन और शरीर से वन्दन करता हूँ ॥१०॥ १४--जावंति चेइआई सूत्र । * जाति चेइआई, उड्ढे अ अहे अतिरिअलोए । सव्याई ताई वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥१॥ अन्वयार्थ-'उडे' ऊर्चोक में 'अहे अ' अधोलोक में 'अ' और 'तिरिजलोए' तिरछे लोक में तत्थ' जहाँ कहीं 'संताई' वर्तमान 'जाति' मिलने पहआई' जिन-विम्ब हों 'ताई उन 'सव्वाई सब को 'इ' इस जगह संतो' रहता हुआ [ मैं ] 'वंदे वन्दन करता हूँ ॥१॥ भावार्थ---[सर्व-चैत्य-स्तुति ] ऊलोक अर्थात् ज्योति-' लोक और स्वर्ग लोक, अधोलोक यानि पातल में बसने वाले * यावन्ति चैत्यानि, ऊर्षे चाधश्च तिचंगलोके च । सर्वाणि तानि वन्दे, इह संस्तत्र सन्ति ॥१॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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