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________________ २८ प्रतिक्रमण सूत्र । लाख, छत्तीस हजार, और अस्सी ( १५४२५८३६०८०) बतलाई है ॥ ५॥ १२-जं किंचि सूत्र। * जं किंचि नाम तित्थं, सग्गे पायालि माणुसे लोए । जाइं जिणबिंबाई, ताई सव्वाइं वंदामि ॥ १॥ अन्वयार्थ.--.-'सग्गे' स्वर्ग 'पायालि' पाताल [और ] 'माणु से' मनुष्य 'लोए' लोक में 'ज' जो ‘किंचि' कोई 'तित्थं' तीर्थ 'नाम' प्रसिद्ध हो तथा 'जाई' जो 'जिणबिंबाई जिन-बिम्ब हों 'ताई' उन 'सव्वाई' सब को 'वंदामि' वन्दन करता हूँ ॥१॥ ___ भावार्थ--[जिन-बिम्बों को नमस्कार ] । स्वर्ग लोक, पाताललोक और मनुष्य-लोक में--ऊर्ध्व, अधो और मध्यम लोक में-जो तीर्थ और जिन-प्रतिमाएँ हैं उन सब को मैं वन्दन करता हूँ ॥१॥ १३--नमुत्थुणं सूत्र। + नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताण, आइगराणं तित्थ* यत्किञ्चिन्नाम तीर्थ, स्वर्ग पाताले मानुषे लोके । यानि जिनबिम्बानि तानि संवाणि वन्दे ॥१॥ १-वर्तमान कुछ तीर्थों के नामः -- शत्रजय, गिरिनार, तारंगा, शङ्खश्वर, कुंभारिया, आबू, राणकपुर, केसरियाजी, बामणवाडा, मांडवगढ़, अन्तरीक्ष, मक्षी, हस्तिनापुर, इलाहाबाद, बनारस, अयोध्या, संमेतशिखर, राजगृह, काकंदी, क्षत्रियकुण्ड, पावापुरी,चम्पापुरी इत्यादि । + नमोऽस्तु अहद्भयो भगवद्भ्य आदिकरेभ्य स्तीर्थकरेभ्यः स्वयंसंबु
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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