SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इरियावहियं । 'इच्छामि' चाहता हूँ [और] ' मत्थएण' मस्तक से 'वंदामि' वन्दन करता हूँ। __ भावार्थ-हे क्षमाशील गुरो ! मैं अन्य सब कामों को छोड़ कर शक्ति के अनुसार आपकी वन्दना करना चाहता हूँ और उसके अनुसार सिर झुका कर वन्दन करता हूँ। ४-सुगुरु को सुखशान्तिपृच्छा। इच्छकारी सुहराइ सुहदेवसि सुखतप शरीरनिराबाध सुखसंजमयात्रा निर्वहते हो जी । स्वामिन् ! शान्ति है ? आहार पानी का लाभ देना जी । भावार्थ-मैं समझता हूँ कि आपकी रात सुखपूर्वक बीती होगी, दिन भी सुखपूर्वक बीता होगा, आप की तपश्चर्या सुखपूर्वक पूर्ण हुई होगी, आपके शरीर को किसी तरह की बाधा न हुई होगी और इससे आप संयमयात्रा का अच्छी तरह निर्वाह करते होंगे । हे स्वामिन् ! कुशल है ? अब मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप आहार-पानी लेकर मुझको धर्म लाभ देवें । ५-इरियावहियं सूत्र । * इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! इरियावहियं __ पडिक्कमामि । इच्छं। * इच्छाकारेण संदिशथ भगवन् ! ईर्यापथिकी प्रतिकामामि । इच्छामि।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy