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________________ १७० प्रतिक्रमण सूत्र । वत्रीशेने ओगणसाठ, तिर्खा लोकमां चैत्यनो पाठ । त्रण लाख एकाणु हजार, त्रणशे वीश ते बिंब जुहार ॥९॥ व्यन्तर ज्योतिषमा वली जेह, शाश्वता जिन वंदू तेंह । ऋषभ चन्द्रानन वारिषण, वर्द्धमान नामे गुणसेण ॥२०॥ समेत शिखर वंदू जिन वीश, अष्टापद वंदूं चोवीश । विमलाचलने गढ़ गिरनार, आबु उपर जिनवर जुहार ॥११॥ शखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्रीअजित जुहार । अंतरिख वरकारणो पास, जीरावलो ने थंभण पास ॥१२॥ . गाम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर चैत्य नमुं गुणगेह । विहरमान वंदू जिन वीश, सिद्ध अनंत नमु निशदिश ॥१३॥ अढ़ीद्वीपमा जे अणगार, अढार सहस सिलांगना धार । पञ्च महावत समिती सार, पाले पलावे पश्चाचार ॥१४॥ बाह्य अभितर तप उजमाल, ते मुनि वंदं गुणमणिमाल। नित नित उठी कीर्ति करूं,'जीव' कहे भवसायर तरूं ॥१५॥ सारांश-प्रतिक्रमण करने वाला हाथ जोड़ कर तीर्थवन्दना करता है । पहले वह शाश्वत बिम्बों को और पीछे वर्तमान कुछ तीर्थ, विहरमाण जिन और सिद्ध तथा साधु को नमन करता है। ___ शाश्वत बिम्ब-ऊर्ध्व-लोक में-बारह देव-लोक, नवप्रैवेयक और पाँच अनुत्तर विमान में-८४९७०२३ जिन-भवन हैं। बारह देव-लोक तक में ८४९६७०० जिन-भवन हैं। प्रत्येक
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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