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________________ लघु - शान्ति स्तव । १४७ अन्वयार्थ – 'गुणवति !' हे गुणवाली 'भगवति !' भगवति ! [तू] 'इह' इस जगत में 'जनानाम्' लोगों के 'शिवशान्तितुष्टिपुष्टिस्वति' कल्याण, शान्ति, तुष्टि, पुष्टि और कुशल को 'कुरु कुरु' बार बार कर । 'ओमिति' ओम् - रूप तुझ को 'हाँ ह्रीँ हँ ह यः क्षः हीँ फुट् फुट् स्वाहा' हाँ हाँ इत्यादि मन्त्राक्षरों से ' नमोनमः ' बार बार नमस्कार हो ॥ १४ ॥ भावार्थ - गुणवाली हे भगवति ! तू इस जगत में लोगों को सब तरह से सुखी कर । हे देवि ! तू ओम् -स्वरूप -- रक्षक - रूप या तेजोरूप है; इस लिये तुझ को हाँ ह्रीँ आदि दश मन्त्रों द्वारा बार २ नमस्कार हो ||१४|| एवं यन्नामाक्षर, - पुरस्सरं संस्तुता जयादेवी । कुरुते शान्ति नमतां, नमो नमः शान्तये तस्मै ॥ १५ ॥ अन्वयार्थ – ' एवं ' इस प्रकार 'यन्नामाक्षरपुरस्सरं ' जिस के नामाक्षर - पूर्वक 'संस्तुता' स्तवन की गई ' जयादेवी' जयादेवी 'नमतां' नमन करने वालों को 'शान्ति' शान्ति ' कुरुते' पहुँचाती है; ‘तस्मै' उस 'शान्तये' शान्तिनाथ को 'नमो नमः' पुनः पुनः नमस्कार हो ||१५|| भावार्थ -- जिस के नाम का जप कर के संस्तुत अर्थात् आहूवान की हुई जया देवी भक्तों को शान्ति पहुँचाती है, उस प्रभावशाली शान्तिनाथ भगवान् को बार २ नमस्कार हो ॥ १५ ॥ १ - ऊपर के अक्षरों में पहिले सात अक्षर शान्तिमन्त्र के बीज हैं और शेष तीन विघ्न विनाशकारी मन्त्र हैं ।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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