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________________ लघु-शान्ति स्तव । १४१ 'स्वामिने' नाथ 'शान्तिजिनाय' श्रीशान्ति जिनेश्वर को 'नमो नमः' बार बार नमस्कार हो ॥२॥ भावार्थ-'ओ३म्' यह पद निश्चितरूप से जिन का वाचक है, जो भगवान् हैं, जो पूजा पाने के योग्य हैं, जो रागद्वेष को जीतने वाले हैं, जो कीर्ति वाले हैं और जो जितेन्द्रियों के नायक हैं, उन श्रीशान्तिनाथ भगवान् को बार बार नमस्कार हो ॥२॥ सकलातिशेषकमहा, सम्पत्तिसमन्विताय शस्याय । त्रैलोक्यपूजिताय च, नमो नमः शान्तिदेवाय ॥३॥ अन्वयार्थ----'सकलातिशेषकमहासम्पत्तिसमन्विताय' सम्पूर्ण अतिशयरूप महासम्पत्ति वाले, 'शम्याय' प्रशंसा-योग्य 'च' और 'त्रैलोक्यपूजिताय' तीन लोक में पूजित, 'शान्तिदेवाय' श्रीशान्तिनाथ को 'नमो नमः' बार बार नमस्कार हो ॥३॥ भावार्थ--श्रीशान्तिनाथ भगवान् को बार बार नमस्कार हो । वे अन्य सब सम्पत्ति को मात करने वाली चौंतीस अतिशयरूप महासम्पत्ति से युक्त हैं और इसी से वे प्रशंसा-योग्य तथा त्रिभुवन-पूजित हैं ॥३॥ सर्वामरसुसमूह, स्वामिकसंपूजिताय निजिताय । भुवनजनपालनोधत, तमाय सततं नमस्तस्मै ॥४॥ सर्वदुरितोषनाशन,-कराय सर्वाऽशिवप्रशमनाय । दुष्टग्रहभूतपिशाच,-शाकिनीनां प्रमथनाय ॥५॥
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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