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________________ प्रतिक्रमण सूत्र । मिलावट कर के देना, (३) चुंगी आदि महसूल विना दिये किसी चीज को छिपा कर लाना ले जाना या मनाही किये जाने पर भी दूसरे देश में जाकर राज्यविरुद्ध हलचल करना, (४) तराजू , बाँट आदि सही सही न रख कर उन से कम देना ज्यादा लेना, (५) छोटे बड़े नाप रखकर न्यूनाधिक लेना देना ॥१३॥१४॥ [चौथे अणुव्रत के अतिचारों की आलोचना ] * चउत्थे अणुब्बयम्मि, निचं परदारगमणविरईओ। आयरिअमप्यसत्थे, इत्थ पमायप्पसंगणं ॥१५॥ अपरिग्गहिआ इत्तर,अगंगवीवाहतिबअणुरागे । नउत्थवयस्सइआरे, पडिक्कमे देसि सव्वं ॥१६॥ अन्वयार्थ-'परदारगमणविरईओं' परस्त्रीगमन विरतिरूप 'इत्थ' इस 'चउत्थे चौथे 'अणुञ्चयम्मि अणुव्रत के विषय में 'पमायप्पसंगणं प्रमादिवश होकर निच्चविले अप्रशस्त 'आय रिअंआचरण किया। जैसेः -- आपतिदिनही व्याही हुई स्त्री के साथ सम्बन्ध, 'इत्तर किमी की थोड़े वस्त तक रक्खी हुई स्त्री के साथ * चतुर्थेऽशुवतं, नित्यं परदारगमन.. चरितमप्रशस्ते,-जयनाराम ।।५।। अपरिगृहीतत्वरा,-दंगविवाहतवानुरागे । चतुर्थवतस्यातिचारान् , प्रतिक्रामामि देवसिकं सर्वम् ॥१६॥ सदारसंतोसस्स समगोवासएगं इने पंच०, तंजा-अपरिग्गहिआगमणे इ त्तरियपरिग्गाहयागमणे अगंगाडा परवीवाहकरणे कामभोगतिव्वाभिलासे। [आवश्यक सूत्र, पृष्ठ ८२३] १-यह सूत्रार्थ पुरुष को लक्ष्य में रख कर है। स्त्रियों के लिये इससे उलटा समझना चाहिये । जैसे :-परपुरुषगमन विरतिरूप आदि ।
SR No.010596
Book TitleDevsi Rai Pratikraman
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSukhlal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1921
Total Pages298
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Paryushan
File Size16 MB
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